एयर होस्टेस पार्ट 3

होटल ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी ,शीना अपने घर लौट आई थी।A H A की ट्रेनिंग अभी 6 महीने की बाकी थी।मगर शीना और बाकी सब दोस्त मन बना चुकी थी कि अब बस जॉब प्लेसमेंट लेंगे खुद।अकादमी पर निर्भर नही रहेंगे।खुद जॉब ढूंढेंगे।हाथ पांव मार कर शीना ने बात भी कर ली थी जॉली ग्रांट एयरपोर्ट के लिए।मकान मालिक का बेटा मनीष।उसके अच्छे संबंध थे एयरपोर्ट ओर मोहित नेगी से जो वहां का हेड था।मनीष शीना को अपनी बहन बुलाता था इस नाते वो तैयार था उसकी मदद करने के लिए।
शीना दिल खोल कर अपने घर पर रह लेना चाहती थी मगर दूसरी तरफ जल्दी से जल्दी जॉब भी करना चाहती थी।कहते है ना मिडिल क्लास लोग सबसे ज्यादा परेशान रहते हैं।छोटे से गांव से निकली एक लड़की अपनी हैसियत से ज्यादा फीस भर कर पढ़ी,कही न कहीं घर का ,रिश्तेदारों का और गांव वालों का दबाव सा महसूस करने लगी थी शीना।अगर जॉब न मिली तो लोग क्या कहेंगे।जल्दी जॉब करूँगी तो घर मे मदद कर पाउंगी।ये सारे विचार शीना को चैन से एक दिन नही बिताने दे रहे थे ,मगर वो तो जानती ही थी कि कुछ दिन में वो चली ही जायगी।मगर रही सही कमी आस पड़ोस के लोगो ने पूरी कर दी थी,हाँ घर वाले भी बराबर के जिम्मेदार थे ,बात बात पर शीना को एहसास होने लगा था कि अब उसका यहां से चले जाना कितना जरूरी है।हर दिन एक ही सवाल की क्या हुआ जॉब का,?शीना को छलनी कर रहा था।अपनो के बीच पराया सा लगने लगा था।शायद उम्मीदे कुछ ज्यादा थी सबकी।जो सपने इन 6 महीने में सबने देख लिए थे वो शीना को झकझोरने लगे थे।शीना भी तनाव में आगयी थी,रात दिन जॉब की बाते ,मनीष से हर रोज बात हो रही थी मगर पता नही क्यों इंटरव्यू नही हो पा रहा था
कहने को अभी सिर्फ 15 दिन ही हुए थे शीना को घर आये मगर ये 15 दिन 15 साल के बराबर लग रहे थे।
आखिर एक दिन एक कॉल ने शीना की जिंदगी फिर से बदल दी।मनीष का फ़ोन था कल ठीक 2 बजे एयरपोर्ट पहुचना था घर से 90 किलोमीटर ।शीना बहुत खुश थी,आखिर सबके सवाल जवाब से छुटकारा मिल रहा था ,मगर अंदर ही अंदर डर रही थी ,एयरपोर्ट पर जॉब कैस ? क्या वो कर पायेगी।
मगर हौसले कभी भी बुलंद थे ।आखिर अगले दिन सुबह से ही शीना के जाने की तैयारी हो गयी थी ,अंदर ही अंदर एक बार फिर से परिवार से दूर होने का दर्द शीना को तोड़ रहा था।
खैर कुछ जरूरत का सामान लेकर शीना निकल पड़ी अपने पापा के साथ बाइक पर।रुचि से पहले से ही बात हो गयी थी ,वो 1 महीने पहले ही एयरपोर्ट पर आई थी।उसने अपने रूम पर रुकने की हामी भर दी थी।शीना खुश थी कि एक बार फिर से वो अपनी दोस्त के साथ रह पायगी ।इस 90 किलोमीटर में 90 से ज्यादा सपने शीना की आंखों में तैर गए थे।आखिर ठीक 1.30 पर पहुचे थे शीना और उसके पापा जॉली ग्रांट।शीना सहम सी गयी थी रुचि को देख कर वो पुरानी रुचि नही थी जिसके साथ शीना ने वो खूबसूरत पल जिये थे ,नैनीताल की ट्रेनिंग और इन कुछ बीते पालो ने रुचि को इतना कैसे बदल दिया था।उसके व्यवहार में सिर्फ एक औपचारिकता दिख रही थी।वो एक दूसरे के लिए जीने मारने वाली दोस्ती तो शायद मर चुकी थी।मगर शीना ने अपने पापा को ये एहसास नही होने दिया था।वो उसको एयरपोर्ट तक छोड़ने गए थे।मोहित से मिलकर आये थे ,अपनी बेटी का ध्यान रखने की रिक्वेस्ट सी कर के आये थे।मगर वो अनजान थे कि ये दुनिया जज़्बातों से बहुत दूर होती है
शीना डर रही थी ये चकाचौंध की जिंदगी देख कर ऊपर से रुचि के बदले व्यवहार ने शीना को अंदर से छलनी कर दिया था।वो बात बात में उसी पुरानी रुचि को तलाश रही थी मगर रुचि का रहन सहन बोल चाल सब बदल गयी थी ।आखिर दिन पूरा हुआ और वो रूम पर लौट आये ।रुचि ने शीना को बताया कि वो सब लोग आज हरिद्वार घूमने जाएंगे और तुम्हे भी साथ चलना है ,शीना ने बेमन हामी भर दी थी,पूरे दिन की थकान के बावजूद शीना जाने को तैयार हो गयी थी ।3 बाइक 6 लोग।रुचि के रूम में एक प्रीति नाम की लड़की भी रहती थी।उसका बॉय फ्रेंड शिशिर ,मोहित, सौरभ ,प्रीति ,रुचि और शीना ।सौरभ रुचि और शीना  एक बाइक पर थे ।आखिर रात के 11 बजे तक हरिद्वार की पौड़ी पर बैठे रहे सब।शीना को घर जाना था मगर वो किस से कहती उसको बेमन  उनके साथ ये वक्त बिताना पड़ रहा था।आखिर रात को 12 बजे रूम पर पहुचे तो मकान मालकिन ने दरवाजा खोलते हुए खूब सुनाया और आगे से 9 बजे के बाद घर से बाहर जाने पर रोक लगा दी।जैसे कैसे रात कट गई।शीना हर बात पर पराया और रुचि पर बोझ सा महसूस कर रही थी।और हद तो तब हुई जब शाम को रुचि ने कहा कि उसने और प्रीति ने रूम बदल दिया है।वो अभी इसी वक्त शिफ्ट कर रही है।और वो दोनों अपना सामान लेकर उस नए कमरे में चली गयी ,शीना भी इंतेज़ार कर रही थी कि रुचि उसे भी बोले कि वो भी अपना बैग लेकर चले ,मगर रुचि ने उसे एक बार भी नही बोला ।शीना बीच सड़क खड़ी चारो तरफ देख रही थी ।न वो मकान मालिक को जानती थी कि वो उनसे कहे कि वो उसे वहां रुकने दें।न वो उस जगह को जानती थी कि कही और जाए।न स्टाफ के लोगो को जानती थी की उनसे कहे कि आज रात उसको पनाह देदो कल वो अपना बसेरा ढूंढ लेगी।शीना की हिम्मत जवाब दे गई थी।उसकी आंखें बहने लगी थी वो वही घर के बाहर जमीन पर बैठ गयी थी।उसे कुछ समझ नही आरहा था कि वो कहाँ जाए कहाँ रुके।अगर मकान मालिक उसे क्यों रुकने देमंगे वो उनकी क्या लगती है ,जिसके सहारे इस घर में आई जब वो ही चली गयी तो शीना का किस से क्या सम्बन्ध।और गर उसने बोला और मकान मालिक ने उस से पैसे लिए तो। शीना ने अपनी जेब पर हाथ मारा था जिसमे 500 रुपये भी पूरे नही थे ।अभी तक महीने का खर्च सिर्फ 250 रुपये मिलते रहे थे जिसमें वो पूरा महीना निकालती थी।बाकी घर से जब भी उस से पूछा जाता कि क्या उसके पास पैसे हैं तो वो न होते हुए भी हाँ बोल देती थी,क्योंकि बिजनोर जैसे छोटे शहर में ,या ये कहें कि गांव में रहने पर 250 रुपए बहुत होते थे मगर शायद घर वाले अनजान थे कि ये देहरादून शहर है यहां 250 क्या 2500 रुपये भी कम थे।।आज जाते जाते उसके पापा ने कुछ पैसे उसे थमा दिए थे मगर यदि मकान मालिक ने अभी पैसे मांगे तो वो खाना पीना कहाँ से खायेगी।शीना की आंखे बरस गयी थी।उसके पास अपना कहने वाला कोई नही था ।19 साल की शीना घर से इतनी दूर ।अगर घर बताये भी तो क्या।फिर भी उसने घर फ़ोन किया।मगर बहन की आवाज ने उसे और कमजोर कर दिया ।जल्दी में हूँ बोल कर फ़ोन रख दिया शीना ने।रात होने लगी थी ।पक्षी भी अपने घरों को लौटने लगे थे।मगर शीना बीच रास्ते मे खड़ी इधर उधर देख रही थी।एक बार को मन किया कि रुचि को बोले की उसे भी पनाह देदो, मगर उसका आत्मसम्मान सामने आ खड़ा हुआ था।चाहे जो हो उसकी मदद नही।शीना को समझ आने लगा था कि ऐसे बैठ कर कुछ नही होगा उसे हिम्मत नही हारनी।वो निकल पड़ी थी ।घर घर जाकर पूछने लगी थी कि क्या कोई कमरा खाली है उनके पास।कहीं कमरा मिलता तो आस पास के लोग खराब दिखते।कही लोग अच्छे होते तो कमरा खराब होता।कही उसकी हैसियत से ज्यादा किराया होता।आखिर शीना टूट गयी थी।वापस आकर अपने बाहर आंगन में रखे बैग के पास बैठ गयी थी।मकान मालकिन उसकी हालत समझ रही थी वो उसके पास आई और बोली कि वो चाहे तो एक रात यहां रुक सकती है।शीना की आंखे बरस गयी थी ,धैर्य टूट गया था वो बिफर पड़ी थी।उस औरत ने उसे प्यार से बोला कि वो समझती ह की उसकी दोस्त उसे कैसे अकेले छोड़ कर चली गयी है वो यहां आराम से रुक सकती है जब तक उसे कमरा नही मिल जाता।शीना एक आखिरी प्रयास करना चाहती थी।वो एक छोटा सा गांव था जो एयरपोर्ट के पास बसा था।उसमें 2 4 घर अभी बाकी थे जिसमें शीना कमरा पूछने नही गयी थी।शीना ने उनको बोला की अगर उसे कमरा ना मिला तो वो यहीं रुक जायगी।शीना को एहसास था कि उस अपनी से अच्छी तो ये पराई है।वो उम्मीद लिए अब आखिरी घर मे पहुची थी।एक मध्यम उम्र की औरत यही कोई 40 साल की।उसके 2 छोटे बच्चे।आलीशान घर।उसने शीना को नीचे कोने में बना कमरा दिखाया ।जो एक दुकान थी।शटर बन्द था।बिल्कुल छोटा सा कमरा।उसमे एक दीवान बेड पड़ा था।एक छोटी सी जाली और लकड़ी की बनी अलमारी रखी थी।शीना ने देखते ही हाँ बोल दिया था।आखिर उसके पास न ही तो कोई विकल्प था न ही कोई इतना समान की इस कमरे को मना कर पाए 800 रुपए महीने में कमरा तय हो गया था।किराया भी ठीक था।अब बात की रात हो गयी है शीना खायेगी क्या।शीना झट से अपना बैग लेकर वहां शिफ्ट हो गयी थी।नई मकान मालकिन ने उसको बोला था कि इतनी रात को वो कहाँ खाना खायेगी बाजार वहां से लगभग 2 किलोमीटर था।सारि परिस्तिथि देखते हुए शीना ने वही उनके साथ खाना खाया।अब एक और चुनौती सामने खड़ी थी मकान मालकिन ऊपर रहती थी।नीचे का फ्लैट खाली थी शीना का कमरा इतने बड़े घर के एक कोने में था।अकेले नई जगह,नया घर ,ऊपर से दरवाजे का लॉक खराब।शीना अपने बिस्तर पर पसर गयी थी।वो चीख चीख कर रो रही थी।घर की याद,माँ पापा का साथ,बहनो का प्यार उसे तोड़ रहा था।रोते रोते नींद आयी ही थी एक तेज़ आवाज ने उसकी नींद तोड़ दी।शीना डर के उठी।बाहर बहुत तेज बारिश ,आंधी तूफान आया था।टिन का शटर ,टिन का दरवाजा जो लगातार दीवार से टकरा रहा था।कड़कती बिजली की आवाज शीना को डरा रही थी।आखिर और कितनी परीक्षा।शीना घर और अपनो के साथ को याद कर के आंसू बहा रही थी।फिर उसने अपना एक दुपट्टा दरवाजे के हत्थे में बांधकर दूसरे दरवाजे से बांधा।डरावनी आवाजे थोड़ी कम हो गयी थी और देखते ही देखते दिन निकल आया था।
खाना पीना रहना सब एक चुनौती था।जैसे कैसे 3 से 4 दिन शीना ने बिस्कुट ब्रेड खा कर निकले जब तक उसके घर से उसका रसोई का सामान नही आया।आखिर शीना रम सी गयी थी अपनी इस अकेली सी जिंदगी में।खुद खाना बनाती।दिन में वापस आती खाना खाती फिर जाती फिर शाम को वापस आकर खाना बनाती,थोड़ा घूमने जाती फिर सो जाती।
सबकुछ अच्छा चल रहा था बारिश की चुनौती कभी कभी हिम्मत तोड़ती जब उस कमरे में पानी भरता।कभी कभी 3 4 दिन तक पीने का पानी ना आता।एक एक बूंद को तरस जाते मगर जो भी था शीना संतुष्ट थी। मगर अभी और संघर्ष बाकी थे।कुछ दिनों में खबर आई कि डेक्कन एयरलाइन को किंगफ़िशर ने खरीद लिया है।उन दिनों जॉली ग्रांट एयर पोर्ट पर दिन में सिर्फ 2 फ्लाइट होती थी एक सुबह एक शाम जिसमे 48 पैसेंजर आते थे।अब उसको किंगफिशर ने खरीद लिया था।स्टाफ की भी छटनी होने लगी थी।एयरपोर्ट मैनेजर श्याम शर्मा आगये थे देहली से।पूरे स्टाफ में सनसनी फैल गयी थी ।कौन जायगा कौन रहेगा।शीना और रुचि में से एक को जाना ही था।शीना मन बना चुकी थी कि रुचि को ही चुना जायगा वो उस से पुरानी जो थी।यही हुआ शीना 1 महीने बाद ही फिर से बेरोजगार हो गयी थी।मगर 2 दिन बाद एयरपोर्ट से फ़ोन आया कि शीना को जॉइन करना है ।रुचि को निकाल दिया गया था।कारण जो भी हो शीना खुश थी।
दिन बीतने लगे थे।शीना की बहन भी आई उसके साथ रहने।इस बीच शीन अपनी पहचान तो बना चुकी थी मगर उसमे वो चतुराई नही आई थी जो बाकी के लोगो मे थी।हर कोई श्याम शर्मा को इम्प्रेस करने में लगा रहता था।शीना को ये बटर लगाने वाली कला अभी नही आती थी।वो बस अपना काम करती और घर चली जाती।एयरपोर्ट से रूम का रास्ता पैदल जाने का था।हर लड़की ने अपना बॉयफ्रैंड बना रखा था या ये कहें कि ड्राइवर रख रखा था।मगर शीना में शायद ये कला भी नही थी इसीलिए वो अकेले पैदल आती जाती।दिन गुजरने लगे और इस बीच शीना ने स्वाति को भी अपने पास बुला लिया था।प्रतिभा भी उनसे मिलने आई तीनो ने फिर से कुछ यादगार पल जिये।स्वाति भी वही जॉब करने लगी।दोनों साथ जाती साथ आती किसी तीसरे की जरूरत ही नही थी।सब सही तो चल रहा था मगर कुछ दिनों से शीना को एहसास हो रहा था कि वो कुछ आंखों में खटक रही है और ये तब सामने आया जब एक नोटिस आया कि स्टाफ के कुछ मेंबर्स को गुड़गांव ट्रेनिंग के लिए जाना है 10 दिन के लिए।शीना का नाम लिस्ट में होने के बावजूद उसका नाम हटा दिया गया।ये बात शीना को चुभ गयी थी।मगर मेन टाइम पर शीना को ही भेजा गया लेकिन अभी भी शीना को कुछ सवाल परेशान कर रहे थे जिनका जवाब वो किसी भी हाल में चाहती थी।ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी शीना वापस लौट आई थी ।उसने साफ साफ शब्दों में एयरपोर्ट मैनेजर श्याम शर्मा से सवाल किया कि आखिर उसके काम मे ऐसी क्या कमी थी ,श्याम शर्मा ने उसे बड़े ही शांत शब्दो मे बोला की वो बाकी लोगो की तरह नही दिखती ।शीना को शीशे की तरह साफ था कि एयरलाइन की डिमांड क्या है।उसने बिना कुछ बोले अगले दिन रिजाइन लेटर श्याम शर्मा को थमा दिया और बड़े ही नम्र शब्दो मे कहा "यस सर ,मैं नही हूँ बाकी जैसी क्योंकि मैं अपने फायदे के लिए आज तक यहाँ बॉयफ्रेंड नही बना पाई ।नही हूँ मैं बाकी जैसी क्योंकि मैं अपना काम करती तो हूँ मगर दिखा या बता नही पाती।मैं शायद वो नही बन पाई जो इस ग्लैमरस इंडस्ट्री की डिमांड है एंड सॉरी सर मैं वो कभी बनना भी नही चाहती सो आपकी जॉब आप रखिये।मैं हमेशा के लिए इस इंडस्ट्री को गुड बाई बोलती हूँ।श्याम शर्मा अवाक थे शायद ये उम्मीद से परे था।मगर शीना एक बार फिर से जीत गयी थी।अपने संस्कारो पर खरा उतर कर।और इस तरह शीना ने एयरलाइन को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।अब आगे आप पढेंगे की ये फैसला शीना को किस मोड़ पर लेकर गया।

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने