Sab kuch badal jata hai
बहुत कुछ बदल जाता है धीरे धीरे रिश्तो में सबसे पहले हमारा बात करने का तरीका फिर हमारी बातें बदल जाती है. अब वो जूनून नहीं दीखता एक message का एक call का वो होती तो हैं, हर निर्धारित समय पर मगर जैसे बस कोई उत्तारदायित्व निभाना हो रातो को जागने वाली तड़प एक बोझ बनने लगती है ज़रा सी बात पर परेशान होना अब रोज के natak लगने लगते है अब परवाह बस कभी कभी shabdon में सुनाई देती है अब प्यार बस बंद कमरे में dikhne लगता है. बात करने कि अवधि घटने लगती है प्राथमिकताएं बदलने लगती हैं जिसे पाने के लिए दुनिया भर को एक तरफ रखते हैं उसे पाकर दुनिया याद आती है और उसको भूलने लगते हैं क्युकी वो तो मिल गया, अपना है, कहां जायगा और धीरे धीरे खोने का डर भी खत्म होने लगता hai. पहले जो aadate उसका दीवाना बनाती थी अब वही आदतें कमी में गिनी जाने लगती हैं पहले जो सुबह शाम, दिन रात एक हेलो कि तड़प में गुजर जाता था. अब वो शब्द बस औपचारिकता बन जाते हैं पहले जिसे प...