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aaj ka sach

मैं प्यार

 मैं एक एक कर के सबके पास गया। किसी ने मुझे दूर से देखते ही बाहें खोल दी और किसी ने ,दरवाजा मेरे मुंह पर ही बंद कर दिया। मैने बहुत बार खटखटाया, एक बार ,अंदर तो आने दो , इस बार ऐसा कुछ नही होगा जिस से तुम्हे तकलीफ हो मगर उसने मेरी एक ना सुनी। मैं थक हार कर फिर वही लौट जहा अभी  कुछ देर पहले ही मैं उसे रुला कर आया था  मैने बोला आजाऊँ क्या, वी मुस्कुराई और मुझे आने दिया। वो शायद जानती भी थी ,मैं फिर जाऊंगा  उसे और दर्द देकर ,पता नही क्यों वो फिर भी  मेरे साथ रहना चाहती थी। मुझे क्या  मैं भी रुक गया उसके घर ,। वही सिलसिला फिर शुरू हुआ साथ रहना,साथ हंसना,साथ घूमना,बहुत सारी बाते करना एक दूसरे पर आंख बंद विश्वास ,और जान लुटाना वो भी बहुत खुश थी ,आखिर कौन ना होता लेकिन एक दिन अचानक  फिर मुझे किसी और ने आवाज दी। मैं रह ना पाया मुझे जाना था,कैसे भी  मैने बहुत बहाने बनाये ,उसमे बहुत कमिया निकाली उसको बहुत बार नीचा दिखाया, बहुत सारी साथ ना रह पाने की वजह बताई  वो फिर रोने लगी ,गिड़गिड़ाई अपना आत्मसम्मान,अपनी आबरू,अपनी रूह सब सौपी थी उसने मुझे । मगर ना जाने...

खिन्नता क्या होती है

 अपने ही  गालों पर मारे अनगिनत थप्पड़, अपने ही बाल नोच दिए  उसके अपने ही नाखून उसके हाथों, पैरों और नजाने शरीर मे कहाँ कहाँ गड़े मिले सर में पड़े नीले निशान  रूखे पड़े थरथराते होंठ, ऐंठी ज़बान ,और पीला सुस्त पड़ा चेहरा। आँखों की खत्म नमी, आंसू बनकर कबतक लुढ़की गालों पर हाथों पैरों की झनझनाहट बढ़ी हुई लगी। सांस लौट कर आने में देर करने लगी , धड़कन रुकी सी,थक कर चुप होती सी। वो तोड़ा मरोड़ा तकिया गवाह बना जिसमे उसके नाखून घुसे  बेचैन रात ,दुखते करवट जो बदल कर भी सुकून न मिला दिमाग की नसें आपस मे उलझ गए , सारा खून माथे की लकीरों में सिमट आया। कांपती उंगलिया और कुछ बड़बड़ाते होंठ शांत हो गए  सब शून्य ,सब शून्य ,अंधेरा काला तिलमिला सा दिमाग मे धप धप लगते शब्द और शब्दो की चोट दिमाग पर झिंझोड़ा सा कम्बल और बिस्तर की उलझी चादर भीगा तकिया,और सिली जुबान अगली सुबह  सबने पूछा इतना खुश कैसे रहती हो। बस किस्सा खत्म हुआ उस खिन्नता का जिसे  हम तुम depression कहते हैं। और एक फीकी मुस्कुराहट ने बीती रात फीकी कर दी।

पापा नही पापा जैसे

जब कोई अपना हमे हमेशा के लिए छोड़ जाता है। बहुत बाते अनकही रह जाती हैं। तो हम तड़पते हैं उस एक पल की चाहत में  की काश फिर से हमे एक मौका मिले  ओर हम वो लम्हे फिर से जी ले जो जी नही सके  काश हम माफी मांगे उन गलतियों की जिनका हमे एहसास है फिर हम उस शक्श को हर चेहरे में तलाशते हैं। मैने भी तलाशा उन्हें हर चेहरे में ,जो मेरे दिल के बहुत करीब थे  हां दुनिया बड़ी है ,बहुत लोग मिले मुझे ,उस चेहरे से मेल खाते  एक पल को लगा मैने देख लिया उनको फिर से एक बार दिल धक्क से रह गया ।मैं हर नक्श को ढूंढने लगी उनके क्या हंसी मेल खाती थी ,नही बिल्कुल नही क्या उनकी आंखें वैसी थी ,नही वो भी नही  क्या उनकी हंसी वैसी थी ,नही वो भी नही  तो क्यों लगे मुझे वो उनके जैसे । मैं उनकी हर आदत में उनको तलाश रही थी  वो नही दिखे मुझे । दुख हुआ जब उनको किसी ओर के साथ हस्ते बोलते देखा। दुख हुआ जब वो मुझे उनके जैसा दिख कर अपने नही लगे  वो अलग लोगो के साथ थे तो दिल दुखा  वो मेरे नही थे इसलिए दिल दुखा दिल किया मैं दौड़ कर जाऊं ,और लिपट जाऊं बोलूं क्या वही हो,क्या लौट आये हो। चलो म...

क्या मुझे फिर से बेच पाओगे

 मैं निकली थी रिश्तों के बाजार में  नही कुछ खरीदना नही था   मोल क्या आज कल बस पता करना था  कुछ लोग खरीद रहे थे खुशियां  कुछ बेच रहे थे दर्द अपना दर्द बेचने वालों को कतार लंबी थी  ओर खरीदने वालों की उस से भी लम्बी मगर क्यों मैं हैरान हुई।आखिर दर्द क्यों खरीदे कोई पास गई तो थोड़ा ठिठक गयी। किसी ने कीमत लगाई आसुओं की  किसी ने टूटे दिल की  बदले में मांगी उसकी आगे तक कि खुशी। बदले में मांगी उसकी खुवाहिसे सारी। मैं भी कुछ खरीदना चाहती थीं बिना किसी शर्त का प्यार चाहती थी । मैं सौदा करने निकली थी ,ज़ज़्बातों का  सब कीमत लगा रहे थे उस प्रीति की जो मेरे दिल मे थी। सब बेजजबात से दिख रहे थे । टूटे हालात से लग रहे थे। कोई दिल हार के आया था  कोई अपनो से धोखा खाया था। सबमे कुछ चीज़ें आम थी । जैसे सबकी हस्ती थोड़ी बदनाम थी । कोई किसी के दिल को छूना चाहता था। कोई अभी किसी के जिस्म से निकल कर आया था । कोई दिल जीतने की कसमें खा रहा था  कोई अभी दिल हार कर आया था। भरा हुआ था ये बाजार हर किस्म से । मतलबी सी गंध आ रही थी हर जिस्म से कोई हाथ थामना था किसी...

सुनो वापस आजाओ

 सुनो ,अब तुम वापस आ जाओ  मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है।पता है आज कितना याद किया तुम्हे ,आज ही क्या पिछले कुछ दिनों से रह रह कर तुम याद आ रहे हो।कितना प्यारा ,कितना अच्छा साथ था हमारा। याद है वो बीते कुछ साल जो हमने साथ मे बिताए थे।तुम मेरा कितना साथ देते थे। हर जगह ,हर चीज़ में तुम थे मेरे पास। याद है वो राजपुर रोड ,जब तुम मेरे साथ एक लंबा रास्ता तय करते थे।हम कितने खुश थे साथ।कभी तुम मुझे सिखाते थे,कभी सही गलत बताते थे,कभी मैं तुम्हारी बात मान लिया करती थी ओर कभी अनसुना कर आगे निकल जाती थी ,लेकिन मुझे याद है जब जब मैंने तुम्हारी बात नही मानी मैं पछताई। याद है E C रोड का TLI institute जहां मैं इंग्लिश सीखने जाया करती थी ,तुम भी तो थे साथ।याद है वो पेड़ जिसके नीचे हम सब दोस्त घंटो बात किया करते थे,तुम भी तो होते थे साथ ,मगर तुम कब आते और कब चले जाते हमे भनक तक ना लगती थी। याद है वो करनपुर की गलियां जहा एक एक दिन हमने साथ जिया ओर हज़ारो यादें बनाई। वहाँ का वो लोकल बाजार जो रात को रोज सजा करता था,हम साथ घुमा करते थे । न्यू एंपायर याद है जब वो खुला था और मैंअपने दोस्तो के साथ वहां...

एन ओपन लेटर टू माय सन वेदांत (7)

 हेलो वेदांत आज तुम अपने सात साल पूरे कर रहे हो। सुबह उठते ही तुम्हारा मासूम चेहरा देखा तो सात साल पीछे चली गयी। सात घंटे ,फिर सात हफ्ते,फिर सात महीने और अब सात साल। कितनी जल्दी दौड़ रहा है ये वक्त। और हर साल की तरह इस बार भी सबने तुमने पूछा ,बोलो क्या चाहिए अपने जन्मदिन पर लेकिन इस बार भी तुमने कुछ नही मांगा।ज्यादा पूछने पर बोले 'दिला देना जो भी आपका मन हो,रिमोट कार ही दिला देना। कल तुम्हारे लिए कपड़े लेकर आये, और तुम्हारे दोस्तो के लिए chololate और गिफ्ट्स।अब तुम इतने बड़े हो गए हो कि पहले से दोस्तो को घर का पता बता कर आये हो ,और उनसे वादा करके की कल मैं तुम्हे 200 रुपये की पार्टी दूंगा। वैसे खुद्दार तो हो तुम ,जो चीज़ मुझे सबसे ज्यादा पसंद आती है।मांगने से ज्यादा खुद के पास जो है उसमें मैनेज करने की कोशिश करते हो।पार्टी के लिए मुझसे पैसे नही लिए ,न ही कभी लेते हो ,अपनी गुल्लक से लेते हो। बहुत शैतान हो रहे हो दिन प दिन । घर मे सबको उंगलियों पर नचाने की कोशिश करते हो।दादी दादू को तो दोस्त की तरह ट्रीट करते हो,लड़ते हो ,ज़िद करते हो और प्यार भी। अमायरा को खूब अच्छे से खिला लेते हो अपने स...

मैं आज़ाद थी

 मैं बचपन मे उड़ा करती थी नही, सपनो में नही हकीकत में। अपने नन्हे हाथ फैलाये ,हवा के साथ  उन पगडंडियों में तेज दौड़ा करती थी। मैं बहुत हंसती थी,पूरा दिन खिलखिलाती थी। मेरे छोटे छोटे पंख थे , उम्मीदों के पंख  जो पापा ने दिए,हौंसलो के पंख जो माँ ने दिए  अरमानो के पंख जो बड़ी बहनो ने दिए  और खुशियो के पंख जो छोटे भाई ने दिए। रंग बिरंगे, चमकदार जो हर रोज़ बड़े हो रहे थे। मैं नादान ,बस उड़ रही थी। उन पंखों के सहारे तेज़ हवा के संग । न डर कोई  न खौफ ,न रुकने आसार वो आज़ादी के पंख। मैं बचपन से आज़ाद थी। उड़ने को,आकाश भर घूम आने को अपने ख्वाबो को बुनने को अपना घर बसाने को।मैं हर तरह आज़ाद थी। मैं कोई भी सपना देखने को आज़ाद थी मैं कोई भी काम करने को आज़ाद थी, मैं सांस लेने को आज़ाद थी  मैं जीने को आज़ाद थी। मैं बहुत खुश रहती थी, हर पल चहकती थी,महकती थी  और अपने रंग में रंगी नाचती थी। मैं कितने सुकून में थी। हवा का झोंका था बचपन मेरा  जिसमे न कोई दबाव न कोई बोझ  बस एक ठहराव मैं एक ठहराव थी,अपने व्यक्तिव का ,अपने अस्तित्व का  मैं ,तब मैं थी  मैं आज़ाद थी...