संदेश

aaj ka sach

Sab kuch badal jata hai

 बहुत कुछ बदल जाता है धीरे धीरे रिश्तो में  सबसे पहले हमारा बात करने का तरीका  फिर हमारी बातें बदल जाती है.  अब वो जूनून नहीं दीखता  एक message  का एक call  का  वो होती तो हैं, हर निर्धारित समय पर  मगर जैसे बस कोई उत्तारदायित्व  निभाना हो  रातो को जागने वाली तड़प एक बोझ बनने लगती है  ज़रा सी बात पर परेशान होना अब रोज के natak लगने लगते है  अब परवाह बस कभी कभी shabdon में सुनाई देती है  अब प्यार बस बंद कमरे में dikhne लगता है.  बात करने कि अवधि घटने लगती है  प्राथमिकताएं  बदलने लगती हैं  जिसे पाने के लिए दुनिया भर को एक तरफ रखते हैं  उसे पाकर दुनिया याद आती है और उसको भूलने लगते हैं  क्युकी वो तो मिल गया, अपना है, कहां जायगा  और धीरे धीरे खोने का डर  भी खत्म होने लगता hai.  पहले जो aadate उसका दीवाना बनाती थी  अब वही आदतें कमी में गिनी जाने लगती हैं  पहले जो सुबह शाम, दिन रात एक हेलो कि तड़प में गुजर जाता था.  अब वो शब्द बस औपचारिकता बन जाते हैं  पहले जिसे प...

Kya yhi hai pyar

 एक दिन बस ऐसे ही दिल में सवाल आया कि आखिर , प्यार क्या होता है ,  और मुझे क्यों जानना था कि प्यार क्या है  क्यूंकि मेरे मन में बहुत सारे सवाल थे इस प्यार को लेकर  मैं  खुद से ही पूछना चाहती थी कि प्यार क्या है  असल में प्यार कि दो परिभाषा hain प्यार वो जो आपको सुकून दे  प्यार वो जो आपसे आपका सुकून छीन ले  प्यार वो जो आपको खुशियां दे,  चैन कि neend सुलाए  प्यार वो जो आपकी सारी  खुशियां छीन ले और  रात रात भर सोने न दे  प्यार वो जो आपको दिन में भी haseen सपने दिखाए  और प्यार वो जो आपको रात भर सपनो में भी डराए  प्यार वो जो आपके लिए दुनिया भर कि चीज़े बड़ी खूबसूरत बना दे  प्यार वो जो आपका मन अपने चहेतो से भी हटा दे  प्यार वो जो आपको दुनिया से वैरागी बना दे और  प्यार वो जो आपको भक्ति के रास में डूबा दे  प्यार वो जो आपको jeena seekha दे  प्यार वो जो आपको जीते जी मौत के दर्शन करा दे  प्यार वो जो पूरी दुनिआ से आपको मिला दे  और प्यार वो जो आपको अपनों से भी हटा दे  प्यार वो जो आपको न्य...

मैं लौट आयी थी,

 मैं लौट आयी थी,  हाँ मुश्किल तो था, आगे बढ़ जाने के बाद  पीछे लौट आना  मगर इस बार ज़रूरी लगा  क्यूंकि इस बार सवाल किसी और से नहीं  मेरे खुद मुझसे थे.  बड़ा आसान था आज तक सवाल करना  की क्या वो मेरे लायक हैं ?  खुद पर इतराना, या फिर उनमे कमियां ढूंढ  लेना  इस बार मुद्दा अलग था,  मेरी परख खुद से थी, उस से नहीं  मेरा किरदार, मेरा रवैया, मेरा व्यवहार  मैंने सब रखे तराज़ू में,  और मैं हैरान थी,  मेरा किरदार तो भरा हुआ था,  गलतियो से, कमियों से, बेरुखी से  आज लगा की मैं ही लायक नहीं थी उनके  आखिर क्या चाहिए था मुझे ? प्यार ? वो तो भरपूर था  लगाव ? वो तो खुद से ज्यादा मेरे लिए परोसा गया था  सम्मान  ? वो तो शायद सबसे ज्यादा मेरे लिए रखा गया था  फिर क्या था, जिसकी कमी मुझे खल रही थी  शायद कुछ भी नहीं.  फिर किस लिए और क्यों ही रुक जाती बार बार सबकी जिंदगी में तकलीफ भरने  क्यों ही रुक जाती,  उसको परेशां करने  क्यों ही रुक जाती, उसका सुकून और चैन छीन  लेने...

मैं खुद से मिल रही थी

मैं धीरे धीरे खुद को खो रही थी   और मुझे लगता रहा की मैं मनमानी हो रही हूँ,  अब मुझे अपने आस पास सब बोझ लगने लगे थे  और मुझे लगता रहा की मैं सीमित हो रही हूँ .  धीरे धीरे मेरे रिश्तें कम होने लगे  और मुझे लगता रहा की मैं मतलबी हो रही हूँ,  समय बीता और मैं एकांत प्रिय हो गयी  मुझे लगा सब मुझसे दूर हो रहे हैं.  धीरे धीरे सब का साथ मुझे चुभने लगा  और मुझे लगता रहा सब व्यस्त हो गए हैं  कब मुझे अँधेरे में रहना भाने  लगा पता नहीं लगा  और मुझे लगा मेरी पसंद नापसंद शायद बदलने लगी है  कब मुझे हम से मैं होना अच्छा लगने लगा  और मुझे लगता रहा मैं सुकून में जी रही हूँ  सच तो ये था की मैं खुद को खो रही थी,  शायद मैं खुद से मिल रही थी  शायद मैं खुद की हो रही थी  प्रीति राजपूत शर्मा  27जून 2025

मैं प्यार

 मैं एक एक कर के सबके पास गया। किसी ने मुझे दूर से देखते ही बाहें खोल दी और किसी ने ,दरवाजा मेरे मुंह पर ही बंद कर दिया। मैने बहुत बार खटखटाया, एक बार ,अंदर तो आने दो , इस बार ऐसा कुछ नही होगा जिस से तुम्हे तकलीफ हो मगर उसने मेरी एक ना सुनी। मैं थक हार कर फिर वही लौट जहा अभी  कुछ देर पहले ही मैं उसे रुला कर आया था  मैने बोला आजाऊँ क्या, वी मुस्कुराई और मुझे आने दिया। वो शायद जानती भी थी ,मैं फिर जाऊंगा  उसे और दर्द देकर ,पता नही क्यों वो फिर भी  मेरे साथ रहना चाहती थी। मुझे क्या  मैं भी रुक गया उसके घर ,। वही सिलसिला फिर शुरू हुआ साथ रहना,साथ हंसना,साथ घूमना,बहुत सारी बाते करना एक दूसरे पर आंख बंद विश्वास ,और जान लुटाना वो भी बहुत खुश थी ,आखिर कौन ना होता लेकिन एक दिन अचानक  फिर मुझे किसी और ने आवाज दी। मैं रह ना पाया मुझे जाना था,कैसे भी  मैने बहुत बहाने बनाये ,उसमे बहुत कमिया निकाली उसको बहुत बार नीचा दिखाया, बहुत सारी साथ ना रह पाने की वजह बताई  वो फिर रोने लगी ,गिड़गिड़ाई अपना आत्मसम्मान,अपनी आबरू,अपनी रूह सब सौपी थी उसने मुझे । मगर ना जाने...

खिन्नता क्या होती है

 अपने ही  गालों पर मारे अनगिनत थप्पड़, अपने ही बाल नोच दिए  उसके अपने ही नाखून उसके हाथों, पैरों और नजाने शरीर मे कहाँ कहाँ गड़े मिले सर में पड़े नीले निशान  रूखे पड़े थरथराते होंठ, ऐंठी ज़बान ,और पीला सुस्त पड़ा चेहरा। आँखों की खत्म नमी, आंसू बनकर कबतक लुढ़की गालों पर हाथों पैरों की झनझनाहट बढ़ी हुई लगी। सांस लौट कर आने में देर करने लगी , धड़कन रुकी सी,थक कर चुप होती सी। वो तोड़ा मरोड़ा तकिया गवाह बना जिसमे उसके नाखून घुसे  बेचैन रात ,दुखते करवट जो बदल कर भी सुकून न मिला दिमाग की नसें आपस मे उलझ गए , सारा खून माथे की लकीरों में सिमट आया। कांपती उंगलिया और कुछ बड़बड़ाते होंठ शांत हो गए  सब शून्य ,सब शून्य ,अंधेरा काला तिलमिला सा दिमाग मे धप धप लगते शब्द और शब्दो की चोट दिमाग पर झिंझोड़ा सा कम्बल और बिस्तर की उलझी चादर भीगा तकिया,और सिली जुबान अगली सुबह  सबने पूछा इतना खुश कैसे रहती हो। बस किस्सा खत्म हुआ उस खिन्नता का जिसे  हम तुम depression कहते हैं। और एक फीकी मुस्कुराहट ने बीती रात फीकी कर दी।

पापा नही पापा जैसे

जब कोई अपना हमे हमेशा के लिए छोड़ जाता है। बहुत बाते अनकही रह जाती हैं। तो हम तड़पते हैं उस एक पल की चाहत में  की काश फिर से हमे एक मौका मिले  ओर हम वो लम्हे फिर से जी ले जो जी नही सके  काश हम माफी मांगे उन गलतियों की जिनका हमे एहसास है फिर हम उस शक्श को हर चेहरे में तलाशते हैं। मैने भी तलाशा उन्हें हर चेहरे में ,जो मेरे दिल के बहुत करीब थे  हां दुनिया बड़ी है ,बहुत लोग मिले मुझे ,उस चेहरे से मेल खाते  एक पल को लगा मैने देख लिया उनको फिर से एक बार दिल धक्क से रह गया ।मैं हर नक्श को ढूंढने लगी उनके क्या हंसी मेल खाती थी ,नही बिल्कुल नही क्या उनकी आंखें वैसी थी ,नही वो भी नही  क्या उनकी हंसी वैसी थी ,नही वो भी नही  तो क्यों लगे मुझे वो उनके जैसे । मैं उनकी हर आदत में उनको तलाश रही थी  वो नही दिखे मुझे । दुख हुआ जब उनको किसी ओर के साथ हस्ते बोलते देखा। दुख हुआ जब वो मुझे उनके जैसा दिख कर अपने नही लगे  वो अलग लोगो के साथ थे तो दिल दुखा  वो मेरे नही थे इसलिए दिल दुखा दिल किया मैं दौड़ कर जाऊं ,और लिपट जाऊं बोलूं क्या वही हो,क्या लौट आये हो। चलो म...