“अनकहे शब्द”
ये अनकहे शब्द मुझे पहली बार तब सुनाई दिए , जब मै मात्र 15 साल की थी ,....किसी भी अच्छे काम में किन्नरों का आना शुभ माना  जाता है ,फिर चाहे किसी के घर में बच्चे का जन्म हुआ हो या किसी की शादी ....किन्नरों का आना तो तय होता है  ...उनका नाचना ,कर्कश आवाज में गीत गाना और उलटी सीधी बाते करना एक रस्म के तौर पर  पूरा किया जाता है ....मुझे आज भी याद है जब वो किन्नर हमारे पड़ोस में आये थे मोहल्ले के बच्चे क्या और बड़े बूढ़े क्या सब इकठ्ठा हुए थे उन्हें देखने के लिए ...और उनमे से एक मै भी थी ..मगर सबकी तरह मै उनको देख कर खुश क्यों नहीं थी ...सबको देख कर एसा लग रहा था जैसे बस अब एक खेल शुरू होगा और सबका मनोरंजन करेगा ...सब उत्साहित थे उनको देख कर, उनके कपड़ो को देख कर तरह तरह की बाते कर के एक दुसरे के कानों में कुछ कह कर हंस रहे थे ....मगर मुझे ये सब अच्छा  क्यों नहीं लग रहा था ...क्यों मुझे गुस्सा आ रहा था उनकी ये हंसी और उत्सुकता देख कर ...
वो सारे किन्नर जोर जोर से गीत गा रहे थे ..उनमे से एक ढोलक बजा रहा था और उसको देख कर बाकि सब अभद्र सा व्यवहार कर रहे थे ....मेरी नजर भी उन सब पर थी मगर उनके शरीर और अजीब  से कपड़ो पर नहीं उनकी आँखों में मै देख रही थी ...
वो सब कितने खुश नजर आ रहे थे एसा लग रहा था जैसे दुनिया में सबसे ज्यादा खुश ये ही है और इनकी जिंदगी में कोई दुख होगा ही नहीं ....मगर मुझे एक बेचैनी सी हो रही थी क्योकि शायद मुझे वो सब नजर आ रहा था जिसे कोई देख ही नहीं पा रहा था या फिर देखना ही नहीं चाहता था ..
वो गा रहे थे नाच रहे थे और बारी बारी से खड़े सारे लोगों की आँखों में देख रहे थे जैसे वो जान लेना चाहते थे की उनके इस प्रदर्शन से सब खुश है या इसके बदले में जितने पैसे वो चाहते है वो उनको मिलेंगे या नहीं ....
क्या वो वाकई सब को खुश करने के लिए नाच गा रहे थे या फिर ये उनकी मजबूरी थी ...उनकी आँखों में मै सब देख सकती थी ,उनके होंठो पे हंसी जरुर थी मगर आँखों में न जाने कितने अनकहे शब्द थे जो वो किसी को कह नहीं सकते थे और बिन कहे कोई समझ नहीं सकता था ...लोग उनको बेशर्म बताते है मगर मुझे उनकी आँखे क्यों शर्मसार नजर आ रही थी ...लोग उनको खुशमिजाज बताते है फिर क्यों मुझे वो दुनिया के सबसे दुखी इंसान नजर आ रहे थे क्यों उनकी आँखों में दर्द था जो हंसी बनकर उनके चेहरों पर दिख रहा था ..
उनकी आँखे साफ़ कह रही थी की वो ये सब नहीं करना चाहते मगर ये उनकी मजबूरी है या फिर इस रूप में लोगों को दुआएं देने की जिम्मेदारी जो भगवन ने उन्हें जन्म के समय देकर भेजी थी ...
जो भी हो मुझे कुछ अच्छा  नहीं लग रहा था मै उन हस्ते हुए सब लोगों को चुप कर देना चाहती थी मगर मुझे पता था मेरी इन बातो को ,मेरे इन एहसासों को कोई नहीं समझेगा बल्कि मुझे भावुक करार देकर सब फिर से डूब जायेंगे इस नुमाइश में ...
मुझे समझ आ रहा था की ये सब करना इन किन्नरों की मजबूरी क्यों है ..ये न करे तो वो क्या करे ..मैंने उनके बारे में बहुत कुछ पढ़ा ...उनके जीवन के बारे में बहुत कुछ जाना ..उनसब से मुझे बस इतना समझ आया कि वो लोगो को हंसाते है उनकी बलाएं लेते है ...उनको खुश करते है नाचते गाते हैं ताकि उनको कुछ इतने पैसे मिल जाये जिस से वो जी सकें अपनी जरूरतें पुरी कर सके ...क्योकि हमारे समाज ने उन्हें कभी इजाजत नहीं दी की वो भी एक आम इंसान की तरह अपना जीवन यापन कर सकें !
न किसी स्कूल में उन्हें मान सम्मान मिला ना किसी ऑफिस में ..जब लोगों को उन्हें देख कर ठहाके ही लगाने है तो क्यों न वो इसी को अपने जीवन जीने का जरिया बनाएं ..!शायद तभी उन्होंने ये सब करने का फैसला लिया होगा ...मगर बाहर  से कठोर देखने वाले इन किन्नरों के अन्दर भी बाकि लोगो जैसा एक छोटा सा दिल होता है जिसमे हर अच्छी बुरी बार असर करती है ...हमारे समाज के द्वारा सम्मान न मिलना ही कारण है की आज लोग उन्हें अजीब सी नजरो से देखते है ..उनपे हसने के लिए उनके पीछे भागते हैं और उनके इतना कठोर और निर्लज्ज दिखने के पीछे भी हमारी ही सोच है
उस दिन मुझे उनका वो दर्द साफ़ दिखाई दिया मगर मै कर भी क्या सकती थी बस चुप चाप अपने घर वापस आ गई ...मगर मेरी आँखे नम थी ...क्योकि उन किन्नरों के अनकहे शब्द मेरे कानो में गुझ रहे थे ....

                                               प्रीति राजपूत शर्मा 

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने