गुमनाम लेखक
मेरी हर आवाज को
मैंने खुद दबा दिया था
अपने जज्बातों को
जिम्मेदारियों में छुपा दिया था
मगर मेरी हर सांस भी
लेखक बन गई थी
क्योकि वक्त ने मुझे
गुमनाम लेखक बना दिया था
बचपन में पढाई के
बोझ में दब गया हुनर मेरा
और जब होश संभाला तो
जिम्मेदारियों ने अपना गुलाम बना लिया था
सोचा साथ साथ अपने
हुनर को तराश दूंगा मै
मगर मेरे तो अपनों
ने ही मौका न दिया मुझे
और वक्त ने मुझे
गुमनाम लेखक बना दिया था
कभी घर की परेशानिया
कभी बच्चों की जिम्मेदारियां
कभी परिवार आकर मेरे
सपनो के सामने खड़ा हो गया था
अब बस कल्पनाओ में
रह गया था मै एक लेखक बन कर
क्योकि जिन्दगी ने
कर्तव्यों का बोझ बढ़ा दिया था
सब कुछ था आज पास
मेरे मगर मै फिर भी संतुष्ट नहीं था
चाहत थी कुछ कर
गुजरने की मगर वक्त ने बस गुमनाम लेखक बना दिया था
इधर पन्ने भर रहे थे
मेरी कल्पनाओं के शब्दों से
उधर हर पल मै अंधेरो
की गहराइयों में खो रहा था
कभी अपने बच्चों को खुश देख कर मै भूल जाता अपनी नाकाम कोशिशे
और कभी अपने ही
परिवार की खुशियों में खुद को अकेला पा रहा था
क्योकि वक्त ने मुझे
गुमनाम लेखक बना दिया था
जब देखता सबके दिलो
में “प्रीति” अपने लिए
तो अपनी इस उपलब्धि
पर मै खूब इतरा रहा था
मगर जब लौटता फिर
उसी सपनो की दुनिया में
तो फिर से खुद को
खाली सा पा रहा था
क्योकि वक्त ने मुझे
गुमनाम लेखक बना दिया था
Priti
Rajput Sharma
26th
june 2015
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