“तलाक नहीं”
आज मेरा फिर आमना सामना हुआ एक एसी कडवी सच्चाई से जिसका घूंट हम सालों से पी रहे हैं मगर पचता किसी को नहीं ,आज फिर सवाल उठे मन में मगर जवाब आज भी धुंधले ही रह गये !आज फिर मेरी मुलाकात हुई एक एसी ही पीडिता से जो बिना गुनाह की सजा काट रही थी !
आज मेरा सवाल इस पुरुष प्रधानता से था ..कि कब तक ये चलता रहेगा कब तक एक स्त्री सही होकर भी गलत सहती रहेगी !एक लड़की जो समझदार है , होनहार है ,सुन्दरता से लवरेज है ,विनम्र है , संस्कारों में लिपटी हुई है ,पढ़ी लिखी है ,हर सही गलत का चुनाव करने में सक्षम है फिर भी आज क्यों वो अपने अच्छे जीवन और अधिकारों के लिए झुझ रही है !
मेरी ये कहानी आधारित है एक स्त्री की सामाजिक स्थिति पर जो न कभी बदली न बदलने की उम्मीद पर है !आज मैंने फिर से उठा कर देखा वो कच्चा चिट्टा जिसमे हजारो मुद्दे सामने आये की हमारे देश ने कितनी सफलता कितनी तरक्की हासिल की ,कितने अस्पताल बने ,कितने स्कूल बने ,कितना रोजगार बढ़ा,कितनी सड़के बनी ,मगर आज भी को हम पीछे रह गये अपनी सोच को बढ़ने में ,क्यों तरक्की नहीं हो पाई हमारी मानसिक स्थिति में?क्यों आज भी हम पुरुष प्रधानता को पत्थर की लकीर बनाये बैठे है
आज भी क्यों पुरुष स्त्री पर हाथ उठाने को अपनी मर्दानगी समझते है ,क्यों नहीं समझते की स्त्री पर हाथ उठाकर वो अपनी नपुंसकता का परिचय देते है
जो दो हाथ उन्हें मिले वो दो हाथ औरत को भी दिए गए है फिर वो क्यों उन हाथो का इस्तेमाल सिर्फ प्यार लुटाने के लिए करती है किस जगह निचे और कमजोर है औरत ,न ही औधे में ना ही राजनितिक ताकत में ,फिर क्यों?
ये कहानी है मेरी एक बचपन की दोस्त की ,जो मेरे ही साथ पढ़ा करती थी ,हम साथ साथ बड़े हुए ,वो बचपन से ही एक होनहार विधार्थी और अच्छी  बेटी साबित हुई ,अपना कॉलेज करने के बाद हम दोनों ने साथ ही बहार की दुनिया में कदम रखा था ,और धीरे धीरे हम दोनों व्यस्त हो गए अपनी जॉब और निजी जिन्दगी में !और कुछ टाइम बाद हम दोनों की शादी भी हो गई !
आज उसकी शादी को सिर्फ 2 साल हुए है और इन 2 सालों में हजारो कडवे अनुभव लेकर जब वो मेरे सामने आई तो मेरा दिल भर आया !कितने सुनहरे सपने लेकर एक लड़की अपने नए जीवन में कदम रखती है ,कहने को हम 21 वी सदी में जी रहे है फिर आज क्यों वो वही अत्त्याचार सहकर अपने घर वापस लौटी जो कभी अनपढ़ ज़माने में हुआ करता था !दिल्ली जैसे फैशन और आधुनिकता से भरे शहर में रहने वाले लोगो की छोटी सोच का शिकार वो दो साल तक होती रही ,शादी के कुछ दिन बाद ही वो उन सबकी आँखों में चुभने लगी ,किसी के मन में उसके ज्यादा सुंदर होने की इर्ष्या थी तो किसी के मन में दहेज़ ज्यादा पाने की चाह ,किसी के मन में मनमानी चलाने की लालसा ...बहु को बेटी बनाकर लाने का वादा पता नहीं कहाँ खो गया था ,जब वो उस घर में गई तो उसे साफ़ साफ़ बोला गया कि अगर वो यहाँ रहना चाहती है तो उसे अपना पूरा खर्च देना होगा ...मगर क्यों ? मै हैरान थी ये सब सुनकर ...
पति ,सास ,ससुर यहाँ तक कि छोटी ननद का हाथ तक उस पर उठा मगर क्यों?
और वो क्यों सहती रही ?क्या ये उसके संस्कार थे या अपने माँ बाप को परेशानी ना देने की वजह ...उसकी सब मजबूरियां मै समझ रही थी मगर मै खुद को असहाय महसूस कर रही थी ..सान्तवना के बस कुछ ही शब्द फूटे थे मेरे मुहं से ,,,मेने कोशिश की उसे ढाढस बंधाने की मगर मेरे शब्दों में स्थिरता नहीं थी क्योकि उसकी आँख से गिरता हर आंसू मेरे दिल पर घाव कर रहा था ...इस अन्याय को उसका नसीब बताकर मै बात नहीं ख़तम कर देना चाहती थी ,क्योकि ये ख़राब नसीब नहीं खराब सोच का नतीजा था ...
मैंने उसे बोला कि वो निपुण है, सक्षम है ,होनहार है वो चाहे तो कुछ भी कर सकती है ,मगर वो हिम्मत नहीं हार सकती उसे मुह तोड़ जवाब देना होगा हर उस शक्श को जिसने उसको कमजोर समझा ,वो अपने घर को अपने परिवार को एक डोर में बाँध के रखने के लिए सब कुछ सहती रही इसका मतलब ये नहीं के वो कमजोर है अबला है ,,,
बाते बढ़ रही थी हमारे बीच तभी उसकी एक बात ने मुझे ये निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया की अगर ये चाहे तो उन सबकी औकात याद दिला सकती है ,मै भी खुश थी उसके इस फैसले से कि उसने उन सब पर केस कर दिया है , 498A, 125CRPC,DV (
उत्पीडन ,घरेलु हिंसा ,मेंटेनेंस केस ) ..मैंने भी उसको हिम्मत दी और जब बात आई सम्बन्ध विच्छेद की तो मेरा एक ही जवाब था ...सम्बन्ध विच्छेद यानी तलाक ...ये कभी मत करना ...
मत मौका देना उस इंसान को एक और जीवन बर्बाद करने का ...तलाक देने का मतलब है उसे आजादी देना जिसके लायक वो नहीं है ...
और मुझे ख़ुशी हुई ये सुनकर जब उसने भी यही कहा “नहीं नहीं तलाक नहीं “
वो पैरो में भी गिरेगा तब भी तलाक नहीं दूंगी ,,,मेरा जीवन बर्बाद सही मगर खुल कर सांस वो भी नहीं ले पाएंगे ..”तब मुझे भी सुकून मिला क्योकि नारी शक्ति कभी कमजोर नहीं होती वो चाहे तो दुनिया पलट दे ,नारी चाहे तो पुरुषो का अस्तित्व ही मिटा दे ...”ये शब्द मेरे एक दोस्त ने मुझसे कहे थे जो आज मुझे याद आये !
बस मैंने उसे यही कहा की वो अपने जीवन फिर से शुरू करे ..अपनी एक पहचान बनाये ,बिना डर के बिना किसी भय के ...मै हमेशा उसके साथ हूँ ....    

                                                                                   प्रीति राजपूत शर्मा 

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने