मेरी अपनी पहचान
ये सवाल अक्सर हम सबके जहन में उठता है ,जब हम सिर्फ अपने बारे में सोचते है ..कि मेरी अपनी पहचान क्या है ...मेरे मन में भी ऐसे  ही सवाल बचपन से आया करते थे ...और जब भी ये सवाल आता मुझे अपनी पहचान के रूप में अपने पापा का नाम याद आता,आखिर उन्ही के नाम से तो थी मेरी पहचान ,मगर मेरी खुद की कोई पहचान हो ये इच्छा बचपन में ही बड़ी हो गई थी मेरे दिल में ...क्योकि मैंने हमेशा देखा और सुना कि जब लड़की अपने घर होती है तो अपने पिता  के नाम से जानी जाती है,शादी के बाद अपने पति के नाम से उसकी पहचान होती है ..मगर उसके अपने नाम का क्या ?खैर मुद्दा ये नहीं था ...मुद्दा तो तब सामने आया जब मेरी शादी हुई,  हर लड़की की तरह मै भी हजारो सपने लेकर अपनी ससुराल आई आज भी मेरी अपनी पहचान बनाने का जज्बा मेरे दिल में था ,मैंने १० साल की उम्र से लिखना शुरू किया जो मेरा शौक था...कई बार सराहना भी मिली और कई बार डाट भी सुनी .लडकियों और उनके अधिकारों को लेकर मेरे मन में बहुत सवाल उठा करते थे...मैंने हमेशा बिना किसी की परवाह किये गलत के खिलाफ आवाज और कदम दोनों उठाये ...आज फिर से मेरे सामने एक चुनौती आकर खड़ी हो गई थी,
उपनाम को लेकर ....कहते है शादी होते ही लड़की को अपना उपनाम बदल देना चाहिए ...हाँ ठीक है मै भी सहमत थी क्योकि मुझे भी बचपन से सिखाया गया था के शादी के बाद पति का नाम ही लड़की की पहचान  होता है मुझे एतराज़ भी नहीं था ..मगर एतराज़ था तो अपना नाम खो देने से ...अगर पति का नाम या उपनाम लड़की को अपनाना है तो अपनाये मगर उसके साथ अपना नाम अपनी सालो पुरानी पहचान क्यों खोनी होती है .
सच कहूं तो शादी से पहले मेने कभी सोचा ही नहीं था की मुझे भी अपना उपनाम बदलना होगा ...मगर  शादी के बाद जब ये बात मेरे सामने आई तो मै डर सी गई थी ..क्योकि मैंने अपने इस लेखन कार्य से...अपनी प्रतिभाओं से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी ....मुझे ये सवाल खाए जा रहा था कि क्या वो पहचान वो उपनाम अब हनेशा के लिए मै खो दूंगी जिसे पाने के लिए बनाने के लिए मुझे २५ साल लग गये...
मै कुछ भी कर के इस सोच  में बदलाव लाना चाहती थी वैसे भी अब तो सरकार भी ये अधिकार दे चुकी थी कि अगर लड़की अपने ही उपनाम से अपना जीवन यापन करना चाहे तो वो कर सकती थी मगर आज भी कई परिवारों में इसे अपराध और मनमानी माना जाता है ...शायद मै भी उन्ही परिवारों में से एक थी ....मै तैयार थी अपने पति का उपनाम अपनाने के लिए मगर अपना उपनाम छोड़ने के लिए मै कभी तैयार नहीं थी ....
मुझे कई बार बोला गया ..मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था ,,,...एक रास्ता था मेरे पास बस इसी लिए एक दिन मैंने अपने हस्बैंड से इस बारे में बात की ....मै जानना चाहती थी कि क्या मेरा जीवनसाथी मेरे इस फैसले में .मेरी इस अपने अधिकार की लड़ाई में मेरे साथ खड़ा होगा या नहीं ...मैंने विनम्रता से पुछा था ...”सुनिए क्या एक लड़की को अपना उपनाम खो देना चाहिए या अपने और अपने पति के उपनाम को साथ लेकर चलना चाहिए ..”???
मेरी आँखों में बेचैनी थी उनका जबाब जानने की कही न कही मै डर भी रही थी कि इनकी सोच भी वैसी ही न निकले ...
वो लगातार मेरी आँखों में झांक रहे थे शायद वो समझ गये थे कि मै ये सब क्यों कह रही हूँ ...और सच मै बहुत खुश हो गई थी जब मुझे उनकी तरफ से एक सकारात्मक जवाब मिला....बहुत ही सुलझे हुए शब्दों में उन्होंने मुझे कहा था कि अगर मै अपना उपनाम न बदलना चाहू तो उनको कोई प्रॉब्लम नहीं होगी....
मेरा मन उछालने लगा था मगर  मुझे पता था ये अनुमति देना उनके लिए कितना मुश्किल होगा पुरे परिवार का सामना करना होगा ...और मै ही कहाँ इनकार कर रही थी अपने हस्बैंड के नाम को अपनाने से ...फिर मैंने उनको एक सुझाव दिया जो कब से मेरे दिल में था और मैंने धीरे से उनको बताया कि मै अपना उपनाम भी नहीं खोना चाहती हूँ और आपका उपनाम भी नहीं छोड़ना चाहती....मै दोनों को अपनी पहचान में शामिल करना चाहती हूँ मै मिशाल बनना चाहती हु उन लडकियों के लिए जिन्हें जबरदस्ती मजबूर किया जाता है अपनी पहचान खोने के लिए ...आखिर क्यों ये जरुरी बनाया हुआ है हम लोगो ने ....मैंने अपने दिल की बात साफ़ साफ़ अपने हस्बैंड के सामने रखी और मुझे ख़ुशी हुई ये जानकर के उन्होंने मेरे इस फैसले में मेरा साथ दिया ...आज मै अपने जीवनसाथी के चुनाव पर गर्व महसूस कर रही थी जैसे मुझे मेरा अस्तित्व मिल गया था ..और शायद मेरा जवाब भी कि मेरी पहचान क्या है ..आज मुझे एहसास हो रहा था की मेरा ये अपने अधिकारों के किये एक कदम कितनी लडकियों के लिए एक उम्मीद बन सकता है ...और शायद मेरी ये कहानी उनके लिए उत्साहवर्धन का काम करे जो दबाव में आकर अपना अस्तित्व अपनी पहचान और अपनी आवाज को दबा देते हैं .

                                               प्रीती राजपूत शर्मा 

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kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने