भैया से ज्यादा प्यारी है भाभी

 भैया भाभी  दोनों एक ही तो हैं ,आज मैं भैया भाभी के रिश्ते पर कुछ विचार साझा करना चाहती हूँ।

भाई हमारे जीवन का वो साथी होता है जिसके साथ हमने अपना बचपन जिया,लड़ झगड़ कर प्यार से ,मार पिटाई कर के ,बहुत सी यादें बुनी और एक दिन ,एक नए साथी का हाथ थाम निकल गए एक नई मंजिल पर ।

वही दूसरी तरफ भाई की जिंदगी ने भी करवट ली और उसकी जिंदगी में भी एक साथी आयी और वो भी निकल गया अपनी जिंदगी के नए पन्ने लिखने ।हालांकि ना भाभी ने हमारी कमी पूरी की ना हमारे पति ने भैया की।

ना हम कभी बाल खींच कर लड़े,न मार पिटाई कर के लेकिन हां हमारे साथी भी वैसे ही नोक झोंक के बाद भी साथ खड़े  रहते तो लगता कि चलो अभी भी अकेले नही हम ।

समय बीतने लगा और मायके जाना कम होने लगा।जब भी जाते तो भाई घर पर कम मिलता भाभी ज्यादा ।तो यहां से शुरू हुआ भाभी का महत्त्व।हालांकि ये महत्व हमे तब तक पूरी तरह समझ नही आता जब तक हमारे मायके में माँ बाप की छांव रहती है ,लेकिन भाभी का किरदार जो हमारे जाने से लेकर आने तक, तीज त्योहार से लेकर ,सुख दुख तक बढ़ता रहा वो कैसे नजर अंदाज करते।

दरवाजा खुलता तो माँ के साथ भाभी  की बाहे भी तो स्वागत करती।रसोई में बने पकवानों से अब मा के साथ साथ भाभी के हाथों का स्वाद भी तो मिलता। घर का रख रखाव ,माँ का ख्याल ,भाई की छोटी से छोटी जरूरत भाभी के हाथों ही तो पूरी होती।

घर मे आये रिश्तेदार ,उनकी आव भगत ,लेन देन से लेकर ,हर चीज़ भाभी भी तो करती।

फिर भाभी आज भी क्यों लगे पराई।वो तो उसी दिन अपनी हो गयी थी जिस दिन सात फेरे लेते हुए पंडित जी ने भाई के बाएं तरफ बिठा कर कहा कि अब ये अर्धांगनी है तुम्हारी।

तो जब भगवान ने भाभी को भाई का आधा अंग माना तो हम क्यों उनको आज भी पराया माने । हां भैया के संग बचपन की यादें है तो भाभी के संग तो पूरे जीवन की यादें बनेंगी।भैया कभी काम मे बिजी होगा ,कभी जिम्मेदारियों के तले चुप्पी साधे होगा।उसका मूड अच्छा नही हुआ तो शायद बात भी कम कर लेकिन भाभी ।भाभी तो परेशान हो,बीमार हो ,मूड खराब हो ,काम मे दबाव हो फिर भी मुसकरा कर ही स्वागत करेगी।

भाई तो विरला ही पूछे कि बोलो बहन क्या खायगी ।लेकिन भाभी घर आने से पहले ही पूछती है बोलो दीदी खाने में क्या खाओगे।

दीदी ,दीदी कर के 10 बार आगे पीछे घूमती है।कहीं उस दीदी का मुंह न फूल जाए जो आज भी भैया की जिंदगी में भाभी की एहमियत नही समझती ।

छोटा सा उदहारण ही सही ।भैया के बिना भाभी की फ़ोटो हमे कभी नही  भाती, खाली सी लगती है ,फिर भैया की अकेली फ़ोटो क्योंअच्छी लगे? ।भाभी से फ़ोन पर बात और भैया से बात किये बिना फ़ोन रखना अच्छा ना लगे तो सिर्फ भैया से बात करके क्यों फ़ोन कटे। अपनी जान पर खेल कर जब भाभी हमारे भैया के अंश को दुनिया मे लाती है तब भी सारि बधाइयां भैया को क्यों भाभी को क्यों न मिले। 

राखी पर भैया के लिए गिफ्ट खरीदें तो भाभी के लिए कुछ रुपये खर्च करने में क्यों पीछे हटे।

जिस भैया के सामने भाभी की एहमियत आधी भी नही नापते जरा उसी भैया से कहकर तो देखो की भैया बस तुम लगते हो भाभी नही। उस भैया का दिल ना टूट जाये तो कहना। फिर जो इंसान हमारे प्यारे भैया के जीवन का हिस्सा है वो हमें भाभी के बिना पूरा क्यों लगे ।जब भाभी को हम भैया के बिना सोच भी नही सकते तो भैया को भाभी के बिना क्यों।? 

 भाभी से ही तो भैया का घर संसार है ।उसी से भैया की खुशियां ,उसी से जिंदगी ।वही तो है जो हमेशा हमारे भैया का साथ देगी खुद से ज्यादा खयाल रखेगी।उसकी खुशी के लिए न जाने कितने बलिदान देगी।उसका ही क्यों हमारे मा बाप की जिंदगी में हमारी कमी पूरी करेगी।

कल जब माँ पापा नही होंगे ,भैया तो बाप जैसा लगेगा ही लेकिन माँ जैसी तो वो भाभी ही लेगी ना ,जो हमेशा हमारे लिए हमारे बचपन की यादों का दरवाजा खुला रखेगी।जो हमारे बचपन के आंगन को महका के रखेगी ।जब भी जाएंगे ,हमारे घर के हर कोने से हमे मिलाएगी।

फिर क्यों भाभी भैया से कम लगे । 

अब तो भैया से ज्यादा है भाभी ।

Love you bhabhi

3 oct 2022

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने