बस जरुरत थी तो अपनी strength को समझ पाने की ....

इस दुनिया में हजारो लड़कियां रोज जन्म लेती है और हजारो रोज इस दुनिया को अलविदा कहती हैं पर क्या हर लड़की ईमारत की चमकती ईंट होती है या फिर नीव की दबी ईंट रह  जाती है एक  लड़की जब जन्म लती है तो हज़ार बाते होती हैं घर वालो में रिश्तेदारों में ,दोस्तों में या सब में ...आज वक्त बदल गया है लड़के लड़की में कोई फर्क नहीं रहा मगर क्या ये फर्क हर किसी के लिए ख़तम हो गया है या सिर्फ कुछ ही लोगो की सोच बदल पाई है ...आज भी न जाने कितने एसे घर हैं जहाँ लड़की के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है ...लड़की होने की इच्छा जताई जाती है उसे भी वही प्यार आदर सम्मान और हर सुख सुविधा देकर पाला जाता है ...मगर फिर भी वो लड़की ईमारत की चमकती ईंट की list में जगह नहीं बना पाती .
और आज भी हजारो एसे घर हैं जहाँ लड़की के जन्म  को एक अभिशाप माना  जाता है पूर्व जन्मो का बदला समझा जाता है हर जगह उसे लडको से  कम आँका जाता है मगर फिर भी वो नीव की ईंट नहीं ईमारत की ईंट बन जाती है मगर कैसे ...
क्या एक लड़की में दो की जगह एक हाथ, एक पाँव ,एक आँख एक कान होता है या फिर कोई भी चीज़ कम होती है ...नहीं कम होता है तो आत्मविश्वास ..ज्यादा होती है तो भ्रान्ति, जो बचपन से हम लड़कियों के दिल और दिमांग में डाली जाती है ....क्यों कोई भी वजन उठाने का काम एक लड़के को बोला जाता है लड़की को नहीं, उसमे शारीरिक बल की कमी नहीं मानसिक बल की कमी होती है जो बचपन से हम अपने mind में लेकर चलते हैं ..खैर बात यहाँ वजन उठाने या बॉडी बिल्डर बन जाने की नहीं हो रही ...बात यहाँ कम या ज्यादा आंकने की भी नहीं हो रही, बस बात हो रही है अपनी strength को समझ पाने की ...हम में से कुछ ही लड़कियां हैं जो अपनी शक्ति, अपनी मजबूती या अपनी ताकत को समझ पाती हैं ..
मैंने एक साधारण परिवार में जन्म लिया जहाँ लड़की होना कोई पाप नहीं पुण्य का फल समझा गया ...बचपन से आज़ादी ,ताकत, सारे  अधिकार दिए गए, बिना भेद भाव के पाला गया .मगर फिर भी फर्क था लड़के और लड़की में ..किसी सुख सुविधा में नहीं बल्कि रहन सहन के तरीके में ..बचपन से सुना की मै एक लड़की हु जिसे अपनी ससुराल जाकर अपना घर अपनी एक दुनिया बसानी है शायद मेरे घर वाले सही भी थे आखिर घर बसाने  जैसी जिम्मेदारी हम लड़कियां ही तो निभा  सकती है जो हमे god gift के रूप में मिला है मगर उसके साथ साथ और कुछ क्यों नहीं ?
सवाल यहीं से शुरू हुआ था  ...मैंने साधारण पढाई की ...जीवन शैली भी साधारण ही रही, मगर सपने साधारण कभी नहीं थे, मै कुछ कर गुजर जाना चाहती थी ..सपने बुलंद थे, सपनो को पूरी करने की आजादी भी थी, फिर क्यों आज भी मै नीवं की ईंट हूँ ???
ये सवाल मेरे साथ साथ आप सबके दिल में होगा तो जवाब वही है की शायद बाकि लड़कियों की तरह मै भी नहीं समझ पाई अपनी strength को ...
मैंने भी अपनी one fouth life एसे ही निकाल दी मगर क्या ये देर हो गयी ,किसी चीज़ के लिए?मेरी लाइफ के 25 साल निकल गये , क्या मुझे बाकि के 50 साल इसी अफ़सोस में निकल देने चाहिए या फिर आज से शुरुआत कर देनी चाहिए क्योकि किसी भी अच्छी  चीज़ के लिए कभी देरी होती ही नहीं है ..
मेरा बस यही कहना है सब से की हमें जानना होगा की हमारी ताकत क्या है, हमारी positivity level क्या है और क्या पता एक ईमारत wait कर रही हो हमारे जुड़ने के बाद पूरी होने का ...क्या पता हमारे सपने इंतज़ार कर रहे हो हमारे जाग जाने का ...क्या पता हमारे देश की तरक्की इंतज़ार कर रही हो हमारे एक सही फैसले का ...
तो फिर देरी क्यों ..जाग जाते हैं ना ...कर देते हैं न वो सब जिसके लिए हम आये हैं ...कर देते हैं वो सपने पूरे जो सिर्फ सपनो में दीखते है ...
मैतो तैयार हूँ और आप?

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने