weak नहीं strong लोग करते हैं suicide ....

suicide करना हमारे समाज में एक कायरता समझी जाती है !हाँ सच भी है की जो लोग हालातों से लड़ नहीं पाते वो लोग ही आत्महत्या करते हैं मगर क्या वो लोग वाकई कायर या कमजोर होते है ..अगर वो कायर होते है तो आत्महत्या करने जैसी हिम्मत उनमे कैसे होती है ..क्या ये कदम उठाना इतना आसन होता होगा !इसी से  पता लगता है की जो लोग आत्महत्या करते हैं वो मानसिक रूप से कमजोर नहीं बल्कि सबसे ज्यादा हिम्मत वाले होते हैं ..
अक्सर जब एसी कोई घटना हमारे सामने आती है तो हम ज्यादातर लोगो से उस सुसाइड करने वाले इंसान के बारे में यही सुनते हैं कि "क्या उसने सुसाइड कर लिया ? नहीं वो एसा कैसे कर सकता  है या कर सकती है "???? इसका मतलब तो साफ़ है की वो इंसान एसा कैसे कर सकता है यानि हमने हमेशा उसे मजबूत देखा होगा ...
मगर फिर भी  ये कदम तो था ही कायरता का प्रतीक क्योंकि जो  भी  हो ये कदम मेसेज तो यही देता है की वो इंसान हार चूका था ..
आज कल प्रतियुषा सुर्खियों में है ..छोटी आनंदी जिसे हम ने टीवी सीरियल में देखा जो रोल संघर्षों से भरा था ...उसकी असल जिन्दगी में भी उसके करीबे दोस्तों ने यही कहा की हम मान ही नहीं सकते की वो एसा कर सकती है वो बहुत स्ट्रोंग थी ....
फिर एक तरफ लोग कह रहे है कि वो कमोर थी जो ये कायरता की ...
क्या कभी आप लोगो ने सोचा है की किस हालत में लोग सुसाइड करते होंगे ...अपनी जिन्दगी कितने भी बुरे वक्त से भरी हुई हो हर किसी को प्यार होता है उस से ...फिर एसा क्या था जो वो उस दिन्दगी को ख़तम कर देते हैं ...तो जरा ध्यान दीजिये की वो स्ट्रोंग लोग जब टूट जाते हैं तभी वो ये कदम उठाते है और अगर वो स्ट्रोंग  थे तो  एसी कितनी बड़ी  और दर्द भरी बात होगी जिसने उस इंसान को ये सब करने पर मजबूर  किया होगा ...कितना और क्या खोया होगा उस इंसान ने जो उसे लगा होगा की जीवन में कुछ शेष नहीं रहा ...
इसीलिए मै यही कहूँगी की आत्महत्या कमजोर लोग नहीं वो लोग करते है जो कभी सबसे ज्यादा बहादुर हुआ करते थे मगर कुछ हालातों के सामने उन्हें घुटने टेकने पड़े होंगे और वो लोग हालात से हार कर सुसाइड नहीं करते अपनी हिम्मत के टूटने पर टूट जाते हैं,..उनको भी पता होता है की वो कितने स्ट्रोंग हैं मगर यदि फिर भी वो उस परेशानी से बहार नहीं आपाते  इसका मतलब वो खुद को असहाय महसूस करते होंगे ..उनके पास कोई विकल्प ही नहीं रहता होगा ...वो हार जाते होंगे अपने ही अन्दर की हिम्मत से ..
इसलिए मै यही कहूँगी लोगों के मर जाने के बाद बाते बनाने से अच्छा  है हम ये देखे की क्या हम ही तो उसकी मौत के जिम्मेदार नहीं  बन बैठे ...असल में हम ही तो होते है जो सामने वाले को कमजोर या मजबूत बनाते हैं ...हम ही होते है जो टूटते हुए को सहारा देकर संभाल  लेते हैं और मजबूती से खड़े इंसान को भी अपने कटु शब्दों और बुरे बर्ताव से तोड़ देते हैं ..बस प्यार से रहो ..खुश रहो और बाकि सब को भी खुश रहने दो ....तो शायद ये सुसाइड शब्द ही न रहे ...खुश रहिये सकारत्मक रहिये और दुसरो  की हिम्मत बनिए उनके आत्महत्या या आत्मविश्वास  की हत्या का का कारण नहीं ....

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने