"क्या वो सच में बहादुर बेटी थी"
आज एक साल पूरा हो गया ।आज फिर से वही सब होगा पंडित जी आएंगे ,हवन करेंगे ,फिर वही सारा खाना बनेगा,एक भी चीज़ बदलनी नहीं चाहिए पंडित जी ने पहले ही कह दिया था ।परिधि ने सारा काम हाथों पे उठा रखा था बाकि की बहने भी आगयी थी हाथ बटाने।परिधि 15 दिन पहले ही आ गयी थी ससुराल से ।बाकि सब की अपनी अपनी मज़बूरी थी वो उसी दिन आ पाएंगी जब परिधि को पता लगा उसने उसी दिन अपने पति से 15 दिन पहले मम्मी के घर जाने की इज़ाज़त मांगी।भाई घर में अकेला है ,अभी छोटा है उम्र ही क्या है उसकी ,इतनी जिम्मेदारी कैसे निभा पायेगा बहुत तैयारियां करनी होंगी अकेला नहीं कर पायेगा वो ,मैं चली जाती हूँ उसे सहारा हो जायेगा।,, विराज एक सुलझा हुआ इंसान था कभी परिधि को सही चीज़ के लिए ना नहीं की मगर फैसले लेने में हिचकिचाता था ।अगर खुद से कह दिया चली जाओ तो मम्मी पापा डाँटेंगे,शादी को एक साल ही तो हुआ है पत्नी के फैसले बिना उनकी मर्जी के लूंगा तो मम्मी पापा नाराज हो जायेंगे,विराज सोच में पड़ गया था। "ठीक है मैं पापा से बात करता हूँ तुम मम्मी से पूछ लेना एक बार ,बहुत सोच के विराज ने कहा था।खैर जैसे कैसे वो पहुँच गयी थी 15 दिन...