मुझे तेरी जरूरत है

जरुरत शब्द ही हमे depand होने का एहसास कराता है।बचपन से आखिरी समय तक जरुरत शब्द हम सबकी जिंदगी में मुख्य किरदार निभाता है ।
यूँ तो हमे बहुत चीज़ों की जरुरत होती है रोटी की कपडे की एक छत की ,हर सुख सुविधा की ।मगर यहाँ बात रिश्तों की जरूरत की हो रही है  ।
हमे जिंदगी जीने के लिए हमेशा  किसी न किसी की जरुरत होती है  जब हमे लगता है की इस रिश्ते के बिना जीना नामुमकिन है । मगर कौनसा रिश्ता कब तक हमारा साथ निभाता है जब जन्म होता है पालन पोषण के लिए माँ बाप एक परिवार की जरूरत होती है ।हम उनकी छत्र छाया में पलते हैं गलतिया करते हैं मन मानी करते है हमे हर कदम पर उनकी जरुरत होती है।।खेलने के लिए भाई बहिन ,दोस्तों की जरूरत होती है  मगर वो जरूरत कब तक पूरी होती है जब तक हम अपनी जिम्मेदारियो में न बन्ध जाये।जब शादी हो कर हम नए घर जारही होती हैं तो लगता है हम मम्मी पापा के बिना नहीं जी पाएंगे क्योंकि हमे तो हर कदम पर उनकी जरुरत है ।शादी होते ही हमारी जरूरत हमारा जीवन साथी होता है तब लगता है हमे सब रिश्तों को समझने के लिए जीवन यापन के लिए और सुखद जीवन के लिए उसकी जरुरत है।।धीरे धीरे हम आदि हो जाते है उस रिश्ते के वो हमारे लिए जरुरी भी हो जाता है और हमारी जरुरत भी ।तब उसके बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल होता है लगता है इनके बिना हम जी नहीं पाएंगे मगर मैंने कितने जीवन साथी को एक दूसरे का साथ छोड़ कर जाते देखा कोई अपनी जरुरतो के हिसाब से बदला तो कोई हमेशा के लिए साथ छोड़ कर चला गया ।तो कितने दिन साथ निभाया उस रिश्ते ने ।फिर भी मैंने उन लोगो को जीते देखा फर्क था तो इतना की पहले जिंदगी पूरी सी लगती थी उसके बिना अधूरा पन था मगर जिंदगी रुकी नहीं चलती रही ।उसके बाद लगा की हमे जीने के लिए संतान की जरूरत है ये रिश्ता हमारा साथ देगा मगर कुछ संतान किसी मज़बूरी में बदल गयी कुछ बदल जाना चाहती थी और कुछ को संतान मिली ही नहीं तो कितना साथ निभाया इस रिश्ते ने ।क्या संतान के बिना वो जीवन आगे नहीं बढ़ा ।इस दौर तक आते आते हज़ारो दोस्त मिलते हैं जिनसे हम अपने दिल की हर बात करते हैं लगता है की हमे जीने के लिए इसकी जरूरत है हम दिल खोल कर उस से अपने जीवन के पन्ने बाँट लेते हैं जो बात न आज तक माँ से कह पाये न जीवन साथी से वो दोस्त से कह गए तब लगा बस ये है जिसकी मुझे जरूरत है मगर समय बदला रिश्ते बदले और वो दोस्त भी चला गया या तो किसी मज़बूरी में या अपनी ख़ुशी से ।तो क्या जिंदगी रुकी ।।।या चलती रही ।जिंदगी के हर मोड़ पे एक रिश्ता ऐसा था साथ जिसके बिना जीना मुमकिन नहीं लगता था हमे उसकी जरुरत थी मगर कोई रिश्ता कितनी और कब तक जरुरत पूरी कर पाया ।
बचपन में लगा की खुश रहने के लिए हमे बचपन की जरूरत है मगर कुछ साल बाद बचपन ने साथ छोड़ दिया ।फिर लगा एक हष्ठ पुष्ट और सुख सुविधा से भरे जीवन के लिए इस जवानी की जरुरत है मगर कुछ साल बाद इस जवानी ने भी साथ छोड़ दिया ।बुढ़ापा आया तो लगा बस अब जिन्दा रहने के लिए इस बुढ़ापे की जरुरत है मगर इस बुढ़ापे ने भी कब तक साथ दिया और निकल पड़े अंतिम यात्रा पर।
तो अब बताइये की हमे किसकी जरूरत थी ।किसके बिना जीना मुमकिन नहीं था और किसके बिना हम नहीं जी पाये?अब प्रश्न ये उठता है की असल में जीने के लिए जरूरी था क्या ? हमें किसकी जरुरत थी और किसने हमारा साथ दिया तो सच ये है की हमें जरूरत थी हमारी खुद की ।।हमारा साथ दिया हमारे अपने दिल और दिमाग ने हमारी अपनी समझ बूझ ने ।हम नहीं जी सकते थे अपने आत्मविश्वास के बिना अपनी कोशिशो के बिना ।
तो सार यही था दोस्तों की हमारी पूरी जिंदगी निकल जाती है एक निर्भरता पर ।जिंदगी के हर मोड़ पर कोई न कोई हमे अपने जीने के लिए बहुत ज्यादा जरुरी लगने लगता है मगर वो सब हमारा एक डर एक भय होता है जो हमे किसी पर भी निर्भर बनाता है।असल में हम वो खुद है जो खुद के लिए जरुरी हैं हमारा आत्मसम्मान ,हमारा खुद को जान पाना जरुरी होता है जीने के लिए ।
जीवन में कभी किसी को अपने लिए इतना जरुरी मत बनने दो की हम खुद को निर्भर महसूस करने लगे या फिर वो इंसान खुद को हमारा खुदा समझ बैठे ।।
खुद पर विश्वास रखिये ,खुद के फैसलो पर विश्वास रखिये ।खुद की तारीफ करना सीखिये और सुखद जीवन का आरम्भ कीजिये ।

                                   Priti rajput sharma
                                    6 july 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने