"क्या वो सच में बहादुर बेटी थी"


आज एक साल पूरा हो गया ।आज फिर से वही सब होगा पंडित जी आएंगे ,हवन करेंगे ,फिर वही सारा खाना बनेगा,एक भी चीज़ बदलनी नहीं चाहिए पंडित जी ने पहले ही कह दिया था ।परिधि ने सारा काम हाथों पे उठा रखा था बाकि की बहने भी आगयी थी हाथ बटाने।परिधि 15 दिन पहले ही आ गयी थी ससुराल से ।बाकि सब की अपनी अपनी मज़बूरी थी वो उसी दिन आ पाएंगी जब परिधि को पता लगा उसने उसी दिन अपने पति से 15 दिन पहले मम्मी के घर जाने की इज़ाज़त मांगी।भाई घर में अकेला है ,अभी छोटा है उम्र ही क्या है उसकी ,इतनी जिम्मेदारी कैसे निभा पायेगा बहुत तैयारियां करनी होंगी अकेला नहीं कर पायेगा वो ,मैं चली जाती हूँ उसे सहारा हो जायेगा।,,
विराज एक सुलझा हुआ इंसान था कभी परिधि को सही चीज़ के लिए ना नहीं की मगर फैसले लेने में हिचकिचाता था ।अगर खुद से कह दिया चली जाओ तो मम्मी पापा डाँटेंगे,शादी को एक साल ही तो हुआ है पत्नी के फैसले बिना उनकी मर्जी के लूंगा तो मम्मी पापा नाराज हो जायेंगे,विराज सोच में पड़ गया था।
"ठीक है मैं पापा से बात करता हूँ तुम मम्मी से पूछ लेना एक बार ,बहुत सोच के विराज ने कहा था।खैर जैसे कैसे वो पहुँच गयी थी 15 दिन पहले मायके ,विराज खुद गया था उसे छोड़ने।जाते ही तैयारियों में लग गयी थी वो ,क्या क्या सामान आएगा ,क्या कहाँ से लाना है सब लिस्ट बना ली थी ,आखिर पहले भी एक बेटे के सारे काम किया करती थी परिधि ।उसके पापा ऑफिस में बिजी रहते थे भाई अभी छोटा था ।बहने घर में मम्मी के साथ हाथ  बटाती थी ।परिधि तीन बहनो की छोटी बहिन और भाई से बड़ी थी ,सबकी लाड़ली और सबसे चंचल।पापा की लाड़ली बेटी ,उसकी आँख में आंसू आने का मतलब सबको डांट पड़नी । आज इतनी बड़ी हो गयी की सारे काम हाथो में लिए बैठी है सुबह से इधर उधर लगी है अभी तो छोटी सी थी ,सुधा परिधि की माँ कब से उसे बैठे बैठे देख रही थी ।सारे रिश्तेदार आ गए थे और वो तितली की तरह कभी इधर कभी उधर काम निपटा रही थी ।दौड़ते दौड़ते कब शाम हो गयी पता ही नहीं चला विराज भी आया था ताकि आज का सारा काम निपट जाये तो कल वो परिधि को लेके वापस लौट जाये।सब थक गए थे,बस एक रस्म बाकि थी वो सारा सामन पंडित जी के घर पहुचना था ,ज्यादा होने की वजह से वो लेजा नहीं पाये ।सारी बहने ,दामाद ,भाई और सुधा सब एक हॉल में बैठ गए ये बातचीत करने की कुछ रह तो नहीं गया ।तभी सुधा की नजर परिधि पर पड़ी जो खोई खोई सी थी शांत लहरो जैसी।
"परिधि बेटा जा तू जाकर थोडा आराम कर ले सुबह 4 बजे से खड़े पाँव है तू"। सुधा ने परिधि की हालत देखते हुए कहा।और परिधि बिना कुछ बोले चुपचाप बेडरूम में चली गयी वो सोना चाहती थी, मगर नींद जैसे कोसो दूर थी उस से,वो टकटकी लगाये दीवार पे टंगी अपनी फ़ोटो देख रही थी जो शादी से पहले की थी ,एक मम्मी पापा की फ़ोटो ,एक भाई और उसकी,कितना अच्छा लगता है अपना परिवार साथ देख कर,परिधि खो सी रही थी अपने अतीत में ।उसे आज अपना वो पहला प्यार याद आ रहा था जो हर लड़की का पहला प्यार होता है।उसके पिता । कितने लाड प्यार से पाला परिधि को।एक लड़की का पहला प्यार उसके पिता ही तो होते है।बाकि सब तो दूसरे होते हैं जो उनके जीवन में आते हैं।प्यार से रामेन्द्र परिधि के पिता उसे लक्षमी कहते थे ।उसकी हर ख्वाहिश पूरी हुई ,परवरिश भी बाकि सब बहनो से अलग हुई ।बी ए के दूसरे साल ही शहर चली गयी वो एक कोर्स करने जबकि घर से दूसरे शहर जाकर पढ़ाई करने के हमेशा से खिलाफ रहे थे उसके पिता ,मगर जब बात परिधि की आई तो उन्होंने भेज दिया उसे उसकी सपनो की दुनिया में जीने के लिए।देहरादून ज्यादा दूर नहीं था उसके गाँव से मगर यूपी के एक छोटे गाँव की लड़की जब देहरादून जैसे बड़े शहर में पहुंची तो ये सबके लिए बड़ी बात थी ,खैर कब कोर्स पूरा हुआ कब जॉब लगी पता ही नहीं लगा ,समय पंख लगा कर उड़ रहा था ।देखते ही देखते 5 साल निकल गए थे देहरादून में उसी बीच विराज आया परिधि के जीवन में ।पापा मम्मी हमेशा दोस्त बन कर रहे इसलिए बेझिझक परिधि ने विराज को मिलवा दिया अपने परिवार से ,मगर उनकी शादी के लिए रामेन्द्र तैयार नहीं थे ।दोनों की कास्ट अलग है हम गांव में रहते हैं लोग क्या कहेंगे।हज़ारो बाते हुई मगर परिधि अड़ी थी अपनी बात पर की विराज अच्छा लड़का है ,उसे समझता है हम दोनों शादी करना चाहते हैं ,आखिर काफी सवाल जवाब के बाद काफी उतार चढाव के बाद रामेन्द्र तैयार हो गए उनकी शादी के लिए।बहुत धूम धाम से उनकी शादी भी हुई ।घर परिवार सब अच्छा मिला परिधि को मगर रामेन्द्र और सुधा टूट से गए थे ,घर की रौनक थी परिधि,घर सुना सा हो गया था हालाँकि 19 साल की उम्र से वो उनसे अलग चली गयी थी मगर तसल्ली थी की बेटी हमारी है आज पराई हो गयी ।मगर समय के साथ सब समझ गए थे ,की ये विधि का विधान है उसका घर अब वही है ।बहुत खुश थे विराज और परिधि मगर अपने पहले प्यार के लिए उसका दिल आज भी रोता था कैसे रोता बिलखता छोड़ आई वो पापा को ।"विराज, पापा हमारी जिम्मेदारियो को पूरा करने के चक्कर में आज तक अपने सपने पूरे नहीं कर पाये ,मैं उनके लिए कुछ करना चाहती हूँ "। हाँ ठीक है मगर क्या करना है मुझे भी बताओ हम दोनों मिल कर करेंगे।।उन्होंने हम दोनों को एक कर के जो एहसान हम पर किया है उसे हम कभी नहीं उतार सकते परी मगर मैं पूरी कोशिश करूँगा की जब तक रवि बड़ा होकर अपनी सारी जिम्मेदारी नहीं उठा लेता मैं दामाद नहीं बेटा बनकर पापा का साथ दूंगा"।और परिधि खुश होकर विराज के आलिंगन में समां गयी थी।
 होली आने को है ,शादी के बाद पहली होली है मेरी ,जब घर जाउंगी तभी सरप्राइज दूंगी पापा को ,परिधि मन ही मन प्लान बना रही थी । 3 महीने हो गए उसकी शादी को अभी सिर्फ एक बार मायके गयी वो भी पगफेरा करने ,अब होली पर जायेगी कुछ दिन रहने ।बड़ी बेसब्री से होली का इंतज़ार कर रही थी परिधि ,मगर ये होली कभी न भूलने वाली होली होगी ये वो नहीं जानती थी ।रवि उसका भाई आज ही उसके पास से घर के लिए निकला था ।सास ससुर ननद भोपाल गए थे सासु माँ के मायके।घर में बस देवर ,पति और परिधि।शादी के बाद पहली बार घर की सारी जिम्मेदारी उस पर आई थी।सुबह से काम में लगती और रात तक लगी रहती ।देवर भी पूरा दिन बहार रहता ,विराज घर के ही निचे दुकान में रहता,घर में बस परिधि रहती।कुछ दिन से रवि आया हुआ था उसके घर वो भी आज चला गया ।शाम के 4 बजे थे सिलाई बीच में रोक कर शाम की चाय देने गयी थी परिधि विराज को दुकान में जब उसने बताया की रवि का फ़ोन आया था कह रहा था कि पापा जी को चोट लग गयी है।
"अच्छा" ज्यादा लग गयी है क्या?
पता नहीं वो अभी हरिद्वार में था ,बोल रहा था घर के लिए निकल रहा हूँ ।तुम एक बार घर में फ़ोन कर लो।
और परिधि ने विराज के फ़ोन से सुधा का नंबर डायल किया था ,वो बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी की जल्दी से मम्मी फ़ोन उठा कर ये कह दे की छोटा सा एक्सीडेंट था सब ठीक है यहां,परिधि अभी यही सब में खोयी थी की एक लेडीज़ आवाज ने उसकी तन्द्रा भंग कर दी।
"हेल्लो परिधि"? उधर से हेमा बोली थी,परिधि के ताऊजी की बहु ।
"भाभी कैसे हैं पापाजी और मम्मी कहाँ हैं?ज्यादा लगी क्या उनको?कैसे हुआ?
परिधि ने बिना रुके सब पूछ डाला।
मुझे भी कुछ नहीं पता परिधि ,बस फ़ोन आया था कि चाचा जी का एक्सीडेंट हुआ है तभी तुम्हारे भैया चाची को लेकर चले गए ,जल्दी में चाची का फ़ोन यही रह गया।तुम्हे कुछ पता लगे तो मुझे भी बता देना।
ठीक है ,कहकर परिधि ने फ़ोन काट दिया ,किसे फ़ोन करू कहाँ पता करूँ ,वो सोच ही रही थी की तभी उसके बड़े जीजा करन का फ़ोन आगया ,उन्होंने भी यही कहा की पापाजी को चोट लग गयी है तुम दोनों घर आजाओ ।ज्यादा लगी क्या"? परिधि ने फिर यही सवाल दोहराया।
हाँ.. बस तुम दोनों आजाओ" इतना कहकर करन ने फ़ोन काट दिया ।अब परिधि के मन में उथल उथल मच गयी थी,सब ठीक भी है या ये लोग मुझे बहला रहे है ,,कैसे पता करूँ? परिधि खुद में ही बड़बड़ा रही थी ।फिर विराज ने ही कहा ,एक बार पापा के फ़ोन पर कॉल करो, देखते हैं क्या पता लगता है।
हाँ...इतना कहकर परिधि ने रामेन्द्र का नंबर लगा दिया .... किसी पुरुष आवाज ने परिधि की उत्सुकता बढ़ा दी थी।
" हेल्लो आप कौन बोल रहे है? ये मेरे पापा का नंबर है ,मैं उनकी छोटी बेटी बोल रही हूँ देहरादून से। कहाँ हैं मेरे पापा?
हाँ बेटा उनका एक्सीडेंट हो गया है ''' .. उस भारी सी आवाज ने कहा
मगर है कहाँ मेरे पापा ? ज्यादा लगी क्या उनको? परिधि की आवाज अब काँप गयी थी और वो इंतज़ार कर रही थी की वो बोले हाँ सब ठीक है।
"वो यहीं पड़े हैं सड़क पर... उनकी डेथ हो गयी है...
क्या? परिधि को लगा जो उसने सुना वो उसका वहम है उसने फिर दोहराया " कैसे हैं मेरे पापा अंकल? शायद उसके कान उन शब्दों को स्वीकार नहीं कर रहे थे।
"बेटा उनकी डेथ हो गयी है ,यहीं पड़े है अभी सड़क पर।
परिधि जैसे बुत बन गयी थी 'उसे अभी भी यकीन नहीं था की उसने जो सुना वो हुआ होगा।विराज उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।।" क्या हुआ परी पापा ठीक हैं ना ?
मगर परिधि जैसे कुछ सुन ही नहीं पा रही थी, वो अस्त व्यस्त सी ऊपर सीढ़ियों की तरफ चीखते हुए भागी... पापा..... और अपने कमरे में निचे फर्श पर ही बैठ गयी।उसे समझ ही नहीं आया की उसने क्या सुना, क्या उसे फिर से पूछना चाहिए , वो न रो पा रही थी ना चुप हो पा रही थी .।विराज भी दौड़ कर उसके पीछे आया... परी ....परी क्या हुआ बताओ मुझे,,क्या हुआ ? विराज ने परिधि के कंधो को पकड़ कर झकझोर दिया था.। परिधि का दिल किया वो चीख चीख के बोले की उसने क्या सुना।
वो बस धीरे धीरे बड़बड़ा रही थी...पापा ,नहीं विराज पापा है... पापा हैं ,...कुछ नहीं हुआ होगा उन्हें ..पापा नहीं जा सकते न विराज ,,,पापा हैं ...
परिधि शांत हो जाओ और बताओ मुझे की क्या कहा उन अंकल ने ..विराज ने परिधि का चेहरा अपने हाथो में लेलिया था। परिधि बेसुध सी विराज के चेहरे को देख रही थी...अंकल,  अंकल ने बोला पापा नहीं है... मगर पापा हैं विराज मुझे पता है ,पापा हैं... और वो जोर से लिपट गयी थी विराज से और चीखचीख कर रो रही थी
विराज तो जैसे जड़ हो गया था ,क्या कहे वो उस से।उसने परी को खुद से अलग किया और भोपाल अपनी मम्मी पापा को फ़ोन कर के सब बता दिया।गाड़ी भी नहीं थी घर पर विराज ने परिधि का हाथ पकड़ कर उसे निचे आने में सहारा दिया ।परिधि हम अभी घर जा रहे हैं ,शांत हो जाओ हमे बाइक से जाना होगा।" शाम के 5 बजे थे मार्च का महीना जल्दी ही दिन ढाल जायगा ,125 किलोमीटर का रास्ता.।। परिधि खुद को संभाल रही थी, इतनी दूर रात को बाइक से जाना है अगर मैं रोऊँगी तो विराज डर जायगा ,कैसे चला पायेगा इतनी दूर तक बाइक।बस यही सोच कर परिधि चुप चाप बाइक पर बैठ गयी ।जाते जाते हज़ारो सवाल उसके मन में आरहे थे ।।क्या पापा सच में चले गए होंगे ,फिर उसने आसमान की तरफ देखा तारे निकल आये थे ।।।तो क्या पापा तारा बन गए होंगे ?क्या वो हमे जाते हुए देख रहे होंगे? और न जाने क्या क्या चल रहा था परिधि के दिमाग में, की अचानक उसे सुधा का ख्याल आया....माँ... मम्मी कैसी होगी उन्हें तो जरा सी बुरी खबर सुनकर दौरे पड़ने लगते है,,कैसे सुना होगा उन्होंने ये सब? कैसी होंगी वो ? विराज मम्मी कैसी होंगी उनको तो दौरे पड़ते हैं उनकी दवाई भी नहीं होगी वहां।सिर्फ एक ही डॉक्टर है जिसकी दवा उनपर असर करती है मगर जब तक हम पहुंचेंगे वो डॉक्टर घर जा चूका होगा।।।क्या करूँ मैं? परिधि ने जल्दी से अपना फ़ोन निकाल कर अपने बड़े जीजा करण को फ़ोन किया।
जीजाजी आप मेरठ से जल्दी पहुच जायेंगे ,हमे आते आते रात हो जायेगी ।आप मम्मी की दवाई लेलेना जाते ही ।पापा को खो दिया मम्मी को नहीं खो सकते और इतना कहकर बिलख बिलख कर रोने लगी परिधि।करन कुछ बोल नहीं पाया बस इतना कहा ,मैंकोशिश करूँगा टाइम से पहुच जाऊं।
करीब 8 बजे थे चारो तरफ कोहरा छाया हुआ था जब विराज ने परिधि के घर के सामने बाइक रोकी।मगर घर में अँधेरा था...तभी हेमा निकल कर बाहर आई..परिधि...आओ आओ अंदर आजाओ बोल कर उसने लडखडाती परिधि को पकड़ लिया . ।परिधि को लग रहा था की, ये सब सपना हो या फिर वो भाग जाये यहां से ।अंदर बस एक बल्ब जल रहा था परिधि ने चारो तरफ नजर दौड़ाई सब जगह सन्नाटा था ...माँ...माँ कहाँ है भाभी? कहाँ है मेरी मम्मी..रुअंधि सी आवाज में परिधि ने हेमा की तरफ देखते हुए पूछा.।।  तुम आओ लेटो यहां ...सब ठीक है चाचाजी के पास हॉस्पिटल में हैं चाची।अब होश में हैं चाचाजी... घबराने की कोई बात नहीं है, मैं चाय बनती हूँ फिर पीकर तुम वहीँ चली जाना।
मगर परिधि अपनी बात पर अड़ी थी।।।भाभी कहाँ हैं मेरी मम्मी ,बोलो मुझे बहकाओ मत, मुझे सब पता है पापा नहीं हैं अब ...मम्मी बताओ कहाँ है? सुबकते हुए परिधि ने बोला वो बेहोश सी हालात में लेटी थी।
अरे किसने बोला तुम्हे ये सब ,चाचाजी ठीक है अब ,खतरे से बाहर हैं ,तुम चली जाना एक कप चाय पी लो पहले।इस बार परिधि की आवाज में गुस्सा भर गया था...कहाँ है मेरी माँ साफ़ साफ़ क्यों नहीं बताती हो ।मैंने कहा न मुझे सब पता है मुझे मत बहकाओ ।उन अंकल ने सब बता दिया मुझे और फुट फुट कर रोने लगी परिधि।
हेमा भी समझ गयी की अब झूठी सांत्वना देना ठीक नहीं है।
सरकारी अस्पताल में है"।हेमा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा था
"चलो विराज जल्दी चलो।"
वो हॉस्पिटल लगभग 12 किलोमीटर दूर था वहां से ,शहर में। परिधि और विराज चुपचाप निकल गए वहां से ,रस्ते में टूटी बाइक के कुछ टुकड़े,टुटा हेलमेट और पत्थरो से भरी एक ट्राली खड़ी थी।बस वो सब देख कर परिधि का कालेज फट गया था।।।शायद यही वो जगह होगी।
हॉस्पिटल के गेट पर देखा तो भीड़ थी सब जाने पहचाने चेहरे,कुछ गांव के लोग और कुछ रिश्तेदार सब इकठ्ठा हो गए थे ।।परिधि की आँखे सुधा को तलाश रही थी ,की तभी उसे एक गैलरी में अपनी बड़ी बहिन रेणुका और सामने बैठी सुधा नजर आई ,बस अब उसकी हिम्मत जवाब दे गयी थी ,पैर लड़खड़ा गए थे और वो वही नीचे बैठ गयी थी ,रेणुका ने दौड़ कर उसको उठा कर गले से लगा लिया था, मगर वो माँ की तरफ दौड़ी ,और उनके पैरो में गिर गयी।सुधा भी तड़प तड़प कर रो रही थी ।रवि भी वही खड़ा सुबक रहा था।मगर उसकी दो बहने वहां नहीं थी, तभी उसकी तीसरी बहिन विद्या नजर आई जो अभी ग़ाज़ियाबाद से यहां पहुंची देखते ही वो सदमे में बैठ गयी, शायद उसे ये नहीं पता था की पापा इस दुनिया में नहीं रहे।वो बुत बन गयी थी एक भी आंसू उसकी आँख में नहीं था।अब परिधि चारो तरफ अपनी दूसरी बहिन वर्षा को धुंध रही थी ,की तभी आई. सी .यू से कुछ डॉक्टर एक स्टेचर को बाहर लाये शायद कहीं और शिफ्ट करने के लिए उसे देख कर परिधि के होश उड गए ।।वहां वर्षा बेसुध लेटी थी।।। मगर एक्सीडेंट तो पापा का हुआ फिर ये यहां ? ये सवाल बस सवाल रहा परिधि ने कुछ नहीं पुछा किसी से।
तभी किसी ने आकर कहा की पोस्टमार्टम में टाइम लगेगा तुम सब घर चले जाओ यहां बैठने का कोई फायदा नहीं ,और उन सब को घर पंहुचा दिया।घर में बहुत सी औरते पहले से आगयी थी ,पूरा घर मातम से भरा था  । रोते रोते कब 2 बज गए तभी एम्बुलेंस घर के सामने आकर रुकी ।सफ़ेद कपडे में लिपटी एक भारी भरकम देह को कुछ लोग उठा कर ला रहे थे,। रिवाज के मुताबिक मृत इंसान को जमीन पर लिटाया जाता है मगर परिधि चीखते हए दौड़ी "नहीं नहीं निचे नहीं,,बहुत कुछ कमाया है मेरे पापा ने ,नीचे नहीं ।।और झट से उसने नीचे एक गद्दा डाल दिया था ,कोई कुछ नहीं बोला और बेटी के प्यार के सामने एक रिवाज तोड़ दिया।
परिधि ने घर आते ही सुधा की वो दवाई ढूंढी शायद उसकी शादी के टाइम की ली हुई दवाई अभी सुधा के पर्स में रखी थी ,सुधा को लगातार दौरे पड़ रहे थे और परिधि अपने आंसू छुपाये माँ को बचाने में लगी थी।बड़ी बहिन रेणुका अपने 2 छोटे छोटे बच्चों को संभाल रही थी ,विद्या तो अपना होश कब का खो चुकी थी ,और कभी हंस रही थी कभी रो रही थी।वर्षा पहले से आई.सी.यू में जिंदगी मौत से लड़ रही थी ,और रवि वो अपने छोटे कंधो पर आये इस भार और जिम्मेदारी को उठाने के लिए खुद को तैयार कर रहा था ।इतनी सी उम्र में उसने अपने सर का साया खो दिया था, कोई कुछ कह कर उसे गले से लगा रहा था ,कोई कुछ कह कर।बस सुधा को सँभालने के लिए ले दे कर परिधि ही बची थी। उसे बार बार रामेन्द्र की बात याद आरही थी की मेरी लक्षमी सबसे बहादुर है,,शेर है मेरा शेर.।।। तो आज समय आ गया था शेर दिल दिखाने का।उसने अपने सारे आंसू अपने अंदर समेट लिए थे ,और बस सुधा की देख  भाल में लग गयी थी मगर शायद अभी उसे और साबित करना था ,की वो सच में बहादुर बेटी है और वो तब साबित हुआ जब पड़ोस की एक भाभी ने परिधि को वो सब करने को कहा जो करने में हर किसी के हाथ काँप जाये
परिधि बेटा चाचाजी का सारा सामान एक कपडे में बाँध दे, और चाची के श्रृंगार का सारा सामन भी भर दे एक थैले में। ये सब इनके साथ ही जायेगा घर में कुछ नहीं रहना चाहिए ,श्रृंगार की कोई निशानी नहीं।।
"मैं"????? बस इतना कहकर टूट सी गयी थी परिधि।
हाँ तू और किसे कहूँ बता और कौन करेगा ये सब ,,तू तो बहादुर है न जा बेटा कर दे।
आज परिधि को खुद के बहादुर होने का अफ़सोस हुआ।कैसे कहती वो की वो बहादुर सिर्फ दिखती है ,,है नहीं।कैसे फेक दूँ वो कपडे जो मैंने खुद लाकर दिए पापा को  ।जब से परिधि ने जॉब करनी शुरू की थी तब से रामेन्द्र के सारे कपडे वही खरीद कर लाती थी ,जो शौक वो बच्चों की जिम्मेदारी तले दब कर पुरे नहीं कर पाये ,वो अब परिधि करती थी उनके लिए।और माँ उनको हर चीज़ लाकर मैं ही तो देती थी ।ऐसी  बिंदी चलन में है ,ऐसा मंगल सूत्र।सुधा का सारा साज श्रृंगार देहरादून से परिधि लाती थी फिर आज कैसे अपने ही हाथों से उठा कर फेक दे वो सारा सुहाग का सामान।परिधि के हाथ काँप रहे थे मगर बहादुर बेटी होने का फ़र्ज़ निभा रही थी ।
देखते ही देखते सुधा के हाथो में खनकती चूड़ियाँ उसकी मांग में सजा सिंदूर उसी के बच्चों के सामने अस्त व्यस्त कर दिया ,और कोई कुछ नहीं कर पाया।और यूँ ही होते होते रामेन्द्र की अंतिम विदाई हो गयी और परिधि और उसका परिवार पीछे दौड़ता रह गया ।घर में बस सन्नाटा रह गया ,जैसे सबके सर से छत उठा कर ले गया कोई।आज परिधि का पहला प्यार उसे हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया।
परिधि...परिधि...अचानक परिधि की तन्द्रा विराज ने भंग कर दी।कब से वो बुरे पल स्मृति बन कर उसकी खुली आँखों के सामने तैर रहे थे।परिधि की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी।
विराज उसके सामने खड़ा था वो देखते ही समझ गया की आज फिर परिधि उन बुरे पलों से गुजरी है।
पंडितजी आगये हैं परिधि ,पापा जी की बरसी का सारा सामन उन्हें देना है।।तुम देदो तुम्ही को पता है क्या कहाँ रखा है। धीरे से विराज ने कहा।
हाँ आती हूँ ।।  कह कर फिर परिधि उठी बहादुर बेटी होने का सबूत देने ,जो पिछले 15 दिन से रामेन्द्र की बरसी की तैयारी में लगी थी ।।।सब उसी को तो करना था उनकी बहादुर बेटी जो थी 
प्रीति राजपूत शर्मा

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने