तुम ठीक हो जाओगी
दिन निकल आया,फिर से वही दिन,जो हर रोज एक ही तरह से शुरू होता है।आज फिर ये दिन मुझे दर्द के साथ शुरू करना होगा,आज फिर ये शीशी थोड़ी हलकी हो जायगी और मेरा पेट थोडा और भारी।इसकी एक गोली आज फिर मेरे अंदर जायेगी।और आधे घंटे बाद मेरा दर्द कुछ कम हो जायेगा ,फिर एक दिखावटी मुस्कान चेहरे पर लिए मैं काम में लग जाउंगी।ऐसा ही तो होता है हर रोज,हर सुबह एक दर्द भरी टीस लेकर आती है !और मेरे चेहरे की सुबह की ताज़गी छीन लेती है,मेरी आँखों में फिर वही दर्द उभर आता है,सारी मुस्कान जैसे दर्द के तले दब जाती है।रजाई से थोडा सा मुँह बहार निकाल कर भावना पलंग के सरहाने दवाइयो से सजी टेबल को ताक रही थी।उसका दिन इन दवाइयो से शुरू होकर इन दवाइयो पर ही तो ढलता है।हर रोज का पेट में उठता ये दर्द उसे निस्तेज कर देता है।फिर उस शीशी से निकली एक गोली उसके अंदर जाती है और सबको लगता है बस अब तो ठीक है ,मगर क्या वो सच में एक गोली उसे ठीक कर देती थी या थोड़ी देर के लिए उसे भुला देती थी की वो बीमार है। ये सब सोचते सोचते शीशी से गोली निकाल कर भावना ने बेमन से गटक ली थी।और उसी उम्मीद से अपने काम में जुत गयी थी की बस जल्दी ही ...